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________________ में होते हैं, उनके अस्तित्व को इसलिये स्वीकार नहीं करता कि 'उनका कर्ता बनने से मिथ्यादृष्टि हो जाऊंगा।' इस प्रकार, रागादिक का अकर्ता बनता है और शरीर की क्रिया को जड़ की क्रिया मानता है। नतीजा यह होता है कि अन्याय / अनाचार - रूप प्रवृत्ति करते हुए इसे कोई डर नहीं रहता । शरीराश्रित क्रियाएं जड़ की ही क्रियाएं हैं यह बात सत्य है; परन्तु यह भी तो सत्य है कि आत्मा में राग-द्वेषादिक भावों के होने पर ही ये (शरीराश्रित) क्रियाएं होती हैं उनमें परस्पर निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध जो ठहरा। ‘उन रागादिक भावों का मैं ही जिम्मेवार हूं और उनका फल मुझे ही भोगना पड़ेगा ' - पर्यायदृष्टि-विषयक इस सत्य को यह अज्ञानी स्वीकार नहीं करता। इस प्रकार, द्रव्यदृष्टि का एकान्त एक मीठा जहर है विषयभोगों की चाह मिटी नहीं, उनकी मिठास मिटी नहीं, परन्तु यह ऊपर से धर्म का, सम्यक्त्व का आवरण ओढ़ लेता है। - $ १.११ समयसार में दिये गए उपदेशों का सम्यक् अभिप्राय - उपर्युक्त दोनों ही प्रकार की मिथ्या एकान्त दृष्टियों से हमें स्वयं को बचाना है। हमारे संसर्ग में भी यदि कोई जिज्ञासु आए तो उसे सही उपदेश दें, जिससे उसका अज्ञान - अंधकार दूर हो सके ऐसा हमारा अभिप्राय होना चाहिये। इसी अभिप्राय-पूर्वक, लोक में पर्यायमूढ़ जीवों की बहुलता देखकर भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य ने समयसार ग्रन्थ की रचना की। द्रव्यदृष्टि-विषयक एकान्त मान्यता तो यह जीव किसी दूसरे का उपदेश पाकर ही बनाता है कारण या तो यह हो सकता है कि आर्ष आचार्यों के कथन का अभिप्राय या मर्म इसने नहीं समझा, अथवा यह कि जिस किसी व्यक्ति के माध्यम से इसने उपदेश ग्रहण किया, वहीं पर कोई भूल रही हो। दूसरी ओर, पर्यायदृष्टिविषयक एकान्त तो इस जीव के, बिना किसी दूसरे के उपदेश के, जन्म-जन्मान्तर से चला ही आ रहा है। पर्यायदृष्टि के एकान्ती जीव की यह एकान्त मान्यता कैसे मिटे ? उसे सम्बोधित करने के लिये भगवान् आचार्य ने द्रव्यदृष्टि की मुख्यता से 10
SR No.229223
Book TitleAtma Vastu ka Dravya Paryayatmaka Shraddhan Samyagdarshan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal
PublisherBabulal
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & Samyag Darshan
File Size78 KB
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