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________________ पूर्व-मीमांसा' अथातो धर्मजिज्ञासा ' सूत्रसे धर्मके स्वरूपका विचार प्रारंभ किया है कि धर्मका स्वरूप क्या है ! तो उत्तर-मीमांसा में ' अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' सूत्र से जगत् के मूलतत्त्वके स्वरूपका विचार प्रारम्भ किया है । - पहलेमें आचारका और दूसरे में तत्त्वका विचार प्रस्तुत है । इसी तरह आधुनिक प्रश्न यह है कि धर्मका बीज क्या है, और उसका प्रारंभिक स्वरूप क्या है ? हम सभी अनुभव करते हैं कि हममें जिजीविषा है । जिजीविषा केवल मनुष्य, 'पशु, पक्षी तक ही सीमित नहीं है, वह तो सूक्ष्मातिसूक्ष्म कीट पतंग और बेक्टेरिया जैसे जंतुओं में भी है । जिजीविषा के गर्भ में ही सुखकी ज्ञात, अज्ञात अभिलाषा अनिवार्यरूपसे निहित है । जहाँ सुखकी अभिलाषा है, वहाँ प्रति“कूल वेदना या दुःखसे बचनेकी वृत्ति भी अवश्य रहती है । इस जिजीविषा, सुखाभिलाषा और दुःख के प्रतिकारकी इच्छामें ही धर्मका बीज निहित है। कोई छोटा या बड़ा प्राणधारी अकेले अपने आपमें जीना चाहे तो जी नहीं सकता और वैसा जीवन बिता भी नहीं सकता । वह अपने छोटे बड़े सजातीय दलका आश्रय लिये विना चैन नहीं पाता । जैसे वह अपने दलमें -रहकर उसके आश्रयसे सुखानुभव करता है वैसे ही यथावसर अपने दलकी अन्य व्यक्तियों को यथासंभव मदद देकर भी सुखानुभव करता है । यह वस्तुस्थिति चींटी, भरे और दीमक जैसे क्षुद्र जन्तुओंके वैज्ञानिक अन्वषेकने विस्तारसे दरसाई है । इतने दूर न जानेवाले सामान्य निरीक्षक भी पक्षियों और बन्दर जैसे प्राणियोंमें देख सकते हैं कि तोता, मैना, कौआ आदि पक्षी केवल अपनी संततिके ही नहीं बल्कि अपने सजातीय दलके संकट के - समय भी उसके निवारणार्थ मरणांत प्रयत्न करते हैं और अपने दलका आश्रय किस तरह पसंद करते हैं । आप किसी बन्दरके बच्चेको पकड़िए, फिर देखिए कि केवल उसकी माँ ही नहीं, उस दलके छोटे बड़े सभी बन्दर उसे बचाने का प्रयत्न करते हैं। इसी तरह पकड़ा जानेवाला बच्चा केवल अपनी माँकी ही नहीं अन्य बन्दरोंकी ओर भी बचाव के लिए देखता है । पशु-पक्षियोंकी यह रोजमर्राकी घटना है तो अतिपरिचित और बहुत मामूली-सी, पर इसमें एक सत्य सूक्ष्मरूपसे निहित है । वह सत्य यह है कि किसी प्राणधारीकी जिजीविषा उसके जीवनसे अलग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229197
Book TitleDharm ka Bij aur Uska Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf
Publication Year1951
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Religion
File Size314 KB
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