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________________ जैन आगम साहित्य में श्रावस्ती जैन आगमिक साहित्य में श्रावस्ती का उल्लेख आर्यक्षेत्र के जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है। भगवतीसूत्र के अनुसार यह नगरी कृतांगला नामक नगर के निकट स्थित थी। इसके समीप अचिरावती नदी बहती थी । श्रावस्ती नगरी के तिन्दुक उद्यान और कौष्ठक वन का उल्लेख हमें जैनागमों में बहुलता से उपलब्ध होता है । स्थानांगसूत्र में इसे भारतवर्ष की दस प्रमुख राजधानियों यथा साकेत श्रावस्ती, हस्तिनापुर, काम्पिल्य, मिथिला, कौशाम्बी, वाराणसी और राजगृह में से एक माना गया है। इस वर्णन से ऐसा लगता है कि स्थानांग के रचना काल तक जैन परम्परा मुख्य रूप से उत्तर भारत के नगरों से ही परिचित थी । श्रावस्ती का दूसरा नाम कुणाला भी था। जैन साहित्य में श्रावस्ती की दूरी साकेत (अयोध्या) से सात योजन (लगभग ९० कि.मी.) बतायी गई है। वर्तमान में श्रावस्ती की पहचान बहराइच जिले के सहेट - महेट ग्राम से की जाती है। आधुनिक उल्लेखों के आधार पर यह बात सत्य भी लगती है, क्योंकि साकेत से सहेट- महेट की दूरी लगभग उतनी ही है। पुनः सहेट- महेट का राप्ती नदी के किनारे स्थित होना भी आगमिक तथ्यों की पुष्टि करता है । राप्ती अचिरावती का ही संक्षिप्त और अपभ्रंश रूप है। श्रावस्ती के उत्तर पूर्व में कैकेय जनपद की उपस्थिति मानी गयी है और कैकेय जनपद की राजधानी सेयाविया (श्वेताम्बिका) बतलायी गयी है। कैकेय के अर्धभाग को ही आर्य क्षेत्र माना जाता था इसका तात्पर्य यह है कि उस काल में इसके आगे जंगली जातियां निवास करती रही होंगी । श्रावस्ती को चक्रवर्ती मघवा, राजा जितशत्रु, पसेनिय (प्रसेनजित) और रूप्पि की राजधानी बताया गया है। इसके अतिरिक्त इस नगर को तीर्थंकर सम्भवनाथ का जन्मस्थान और प्रथम पारणे का स्थान भी माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्ट से हमें जैन आगम साहित्य में जो प्रमाण मिलते हैं, उसके आधार पर यह नगर राजा प्रसेनजित की राजधानी थी। राजप्रश्नीय के अनुसार प्रसेनजित को पार्वापत्यीय श्रमण केशी ने निर्ग्रन्थ परम्परा का अनुयायी बनाया था। राजप्रश्नीय में प्रसेनजित को आत्मा के अस्तित्व एवं पुनर्जन्म के सम्बन्ध में अनेक शंकाये थीं, जिन्हें आर्य केशी ने समाप्त किया था। ज्ञाताधर्मकथा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229187
Book TitleJain Agam Sahitya me Shravasti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf
Publication Year2003
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Geography
File Size270 KB
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