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जैन परम्परा में काशी
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जैन परम्परा में प्राचीनकाल से ही काशी का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता रहा है। उसे चार तीर्थङ्करों-- सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, श्रेयांस और पार्श्व की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। अयोध्या के पश्चात् अनेक तीर्थङ्करों की जन्मभूमि माने जाने का गौरव केवल वाराणसी को ही मिला है। सुपार्श्व और पार्श्व का जन्म वाराणसी में, चन्द्रप्रभ की जन्म चन्द्रपुरी में, जो कि वाराणसी से १५ किलोमीटर पूर्व में गंगा किनारे स्थित है और श्रेयांस का जन्म सिंहपुरी --- वर्तमान सारनाथ में माना जाता है। यद्यपि इनमें तीन तीर्थङ्कर प्राक् ऐतिहासिक काल के हैं किन्तु पार्श्व की ऐतिहासिकता को अमान्य नहीं किया जा सकता है। ऋषिभाषित ( ई०पू० तीसरी शताब्दी) ', आचाराङ्ग (द्वितीय - श्रुतस्कन्ध) २, भगवती, उत्तराध्ययन' और कल्पसूत्र (लगभग प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व) में पार्श्व के उल्लेख आए हैं। कल्पसूत्र और जैनागमों में उन्हें पुरुषादानीय कहा गया है। अंगुत्तरनिकाय में पुरुषादानीय शब्द आया है। उन्हें वाराणसी के राजा अश्वसेन का पुत्र बताया गया है तथा उनका काल ई०पू० नवीं-आठवीं शताब्दी माना गया है ।" अश्वसेन की पहचान पुराणों में उल्लेखित हर्यश्व से की जा सकती है। " पार्श्व के समकालीन अनेक व्यक्तित्व वाराणसी से जुड़े हुए हैं। आर्यदत्त उनके प्रमुख शिष्य थे। १० पुष्पचूला प्रधान आर्या थी ।" सुव्रत प्रभृति अनेक गृहस्थ उपासक और सुनन्दा प्रभृति अनेक गृहस्थ उपासिकायें उनकी अनुयायी थीं । उनके प्रमुख गणधरों में सोम का उल्लेख है । सोम वाराणसी के एक विद्वान् ब्राह्मण के पुत्र थे । १४ सोम का उल्लेख ऋषिभाषित में भी आता है। १५ जैन परम्परा में पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर माने गये हैं । " मोतीचन्द्र ने चार गण और चार गणधरों का उल्लेख किया है वह भ्रान्त एवं निराधार है। " वाराणसी में पार्श्व और कमठ तापस के विवाद की चर्चा जैन कथा साहित्य में है। १८ बौधायन धर्मसूत्र में 'पारशवः' शब्द है, सम्भवतः उसका सम्बन्ध पार्श्व के अनुयायियों से हो; यद्यपि मूल प्रसंग वर्णसंकर का है।" पार्श्व के समीप इला, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, धन्ना, विद्युता आदि वाराणसी की श्रेष्ठि-पुत्रियों के दीक्षित होने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथा में (ईसा की प्रथम शती) आता है। उत्तराध्ययन काशीराज के भी दीक्षित होने की सूचना देता है । " काशीराज़ का उल्लेख महावग्ग व महाभारत में भी उपलब्ध है । २२ अन्तकृतदशांग से काशी के राजा अलक्ष (अलक्ख) अलर्क के महावीर के पास दीक्षित होने की सूचना मिलती है। २३ अलर्क के अतिरिक्त शंख, कटक, धर्मरुचि नामक काशी के राजाओं के उल्लेख जैन कथा साहित्य में हैं
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