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________________ स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिकमुक्ति एवं सवस्वमुक्ति का प्रश्न १२३ वस्त्र के सद्भाव में भी निर्ममत्व के कारण साध्वी अपरिग्रही मानी जाती है। यह ज्ञातव्य है कि यदि हम हिंसा और अहिंसा की व्याख्या बाह्य घटनाओं अर्थात् द्रव्य - हिंसा ( जीवघात ) के आधार पर न करके व्यक्ति के मनोभावों अर्थात् कषायों की उपस्थिति के आधार पर करते हैं, तो फिर परिग्रह के लिये भी यही कसौटी माननी होगी। यदि हिंसा की घटना घटित होने पर भी कषाय एवं प्रमाद का अभाव होने से मुनि अहिंसक ही रहता है, तो फिर वस्त्र के होते हुए भी मूर्च्छा के अभाव में साध्वी अपरिग्रही क्यों नहीं मानी जा सकती है। स्त्री का चारित्र क्स्त्र के बिना नहीं होता ऐसा अर्हत् ने कहा है । तो फिर स्थविरकल्पी आदि के समान उसकी मुक्ति क्यों नहीं होगी ? ज्ञातव्य है कि स्थविरकल्पी मुनि भी जिनाज्ञा के अनुरूप वस्त्र - पात्र आदि ग्रहण करते हैं । पुनः अर्श, भगन्दर आदि रोगों में जिनकल्पी अचेल मुनि को भी वस्त्र ग्रहण करना होता है अतः उनकी भी मुक्ति सम्भव नहीं होगी । पुनः अचेलकत्व उत्सर्ग मार्ग है, यह बात जब तक सिद्ध नहीं होगी तब तक सचेल मार्ग को अपवाद मार्ग नहीं माना जायेगा। उत्सर्ग भी अपवाद सापेक्ष है। अपवाद के अभाव में उत्सर्ग, उत्सर्ग नहीं रह जाता। यदि अचेलता उत्सर्ग मार्ग है तो सचेलता भी अपवाद मार्ग है, दोनों ही मार्ग हैं अमार्ग कोई भी नहीं । अतः दोनों से ही मुक्ति मानना होगा। पुनः जिस तरह आगमों में आठ वर्ष के बालक आदि की दीक्षा का निषेध किया गया है, उसी प्रकार आगमों में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति तीस वर्ष की आयु को पार कर चुका हो और जिसकी दीक्षा को उन्नीस वर्ष व्यतीत हो गये हों, वही जिनकल्प की दीक्षा का अधिकारी है। यदि मुक्ति के लिये जिनकल्प अर्थात् नग्नता आवश्यक होती, तो यह भी कहा जाना चाहिए था कि तीस वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति मुक्ति के अयोग्य है। किन्तु सभी परम्पराएँ एक मत से यह मानती ही हैं कि मुक्ति के लिये तीस वर्ष की आयु होना आवश्यक नहीं है। सामान्य रूप से इसका अर्थ हुआ कि जिनकल्प अर्थात् नग्नता के बिना भी मुक्ति सम्भव है, अतः स्त्रीमुक्ति सम्भव है। आगमों में संवर और निर्जरा के हेतु रूप बहुत प्रकार की तप विधियों का निर्देश किया गया है। जिस प्रकार योग और चिकित्सा की अनेक विधियाँ होती हैं और व्यक्ति की अपनी प्रकृति के अनुसार उनमें से कोई एक ही विधि उपकारी सिद्ध होती है, सबके लिये एक ही विधि उपकारी सिद्ध नहीं होती; उसी प्रकार आचार में भी कोई जिनकल्प साधना के योग्य होता है तो कोई स्थविरकल्प की साधना के । इसलिये वस्त्र का त्याग होने से स्त्री के लिये मोक्ष का अभाव नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229145
Book TitleStreemukti Anyatairthikmukti evam Savastramukti ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf
Publication Year1997
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationArticle & Nine Tattvas
File Size541 KB
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