________________ अध्यात्म और विज्ञान होगा तो शोषण और संग्रह की सामाजिक बुराइयाँ समाप्त होगी। परिणामतः व्यक्ति आत्मिक शान्ति का अनुभव करेगा। अध्यात्मवादी समाज में विज्ञान तो रहेगा किन्तु उसका उपयोग संहार में न होकर सूजन में होगा, मानवता के कल्याण में होगा। ___ अन्त में पुन: मैं यही कहना चाहूँगा कि विज्ञान के कारण जो एक संत्रास की स्थिति मानव-समाज में दिखाई दे रही है उसका मूलभूत कारण विज्ञान नहीं अपितु व्यक्ति की संकुचित और स्वार्थवादी दृष्टि ही है। विज्ञान तो निरपेक्ष है। वह न अच्छा है और न बुरा। उसका अच्छा या बुरा होना उसके उपयोग पर निर्भर करता है और इस उपयोग का निर्धारण व्यक्ति के अधिकार की वस्तु है। अत: आज विज्ञान को नकारने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है उसे सम्यक् दिशा में नियोजित करने की। यह सम्यक दिशा अन्य कुछ नहीं, सम्पूर्ण मानवता के कल्याण की व्यापक आकांक्षा ही है और इस आकांक्षा की पूर्ति अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय में ही है। काश, मानवता इन दोनों में समन्वय कर सके, यही कामना है। सन्दर्भ 1. जे आया से विण्णाया, जे विणणाया से आया। आचारांग 1/5/5. 2. आचारांग, 1/1/1. 3. आत्मज्ञान और विज्ञान ( विनोबा ). 4. वही, 5. वही. 6. आचारांग 1/3/4. 7. छान्दोग्योपनिषद् 7/3. 8. अप्पा खलु मित्तं अमित्तं च सुपट्ठिओ दपट्टिओ। उत्तराध्ययन 20/37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org