________________ 198 ऋग्वेद में अर्हत और ऋषभवाची ऋचायें : एक अध्ययन मरुत्वान् अर्थात् मरुदेवी के पुत्र ऋषभ हम ( भिक्षुओं) को तेजस्वी अन्न से तृप्त करे। जिस प्रकार धूप से पीडित व्यक्ति छाया का आश्रय लेता है उसी प्रकार मैं भी पाप रहित होकर कठोर साधक वृषभ के सुख को प्राप्त कर व उनकी सेवा करूँ अर्थात् निर्वाण लाभ प्राप्त करूं। प्रदीधितिर्विश्र्ववारा जिगाति होतारमिलः प्रथमं यजध्यै। अच्छा नमोभिवृषभ वन्दध्य स देवान्यदिषितो यजीयान।।(3.4.3) समग्र संसार के द्वारा वरेण्य तथा प्रकाश को करने वाली बुद्धि सबसे प्रथम पूजा करने के लिए ज्योति स्वरूप ऋषभ के पास जाती है। उस ऋषभ की वन्दना करने के लिए हम नमस्कार करते हुए उसके पास जायें। हमारे द्वारा प्रेरित होकर वह भी पूजनीय देवों की पूजा करें। अपालहो अग्ने वृषभो दिदीहि पुरो विश्र्वाः सौभगा सजिगीयान / यशस्य नेता प्रथमस्य पायोजाविदो बृहतः सुप्रणीते।। (3.15.4) हे अपराजित और तेजस्वी वृषभ आप सभी ऐश्वर्यशाली नगरों में धर्म युक्त कर्मो का प्रकाश कीजिए। हे सर्वज्ञ ! आप अहिंसा धर्म के उत्तम रीति से निर्णायक हुए, आप ही त्याग मार्ग के प्रथम नेता है। ( ज्ञातव्य है कि यहां यज्ञ शब्द को त्याग मार्ग के अर्थ में ग्रहीत किया गया मरुत्वन्तं वृषभ वावृधानमकवारिं दिव्यं शासमिन्द्रम। विश्र्वासाहमवसे नूतनायोग्रं सहोदामिह त्वं हुवेम।। (3.47.5) मरुत्वान् विकासमान अवर्णनीय दिव्य शासक सभी (कर्म) शत्रुओं को हराने वाले वीर ऋषभ को हम आत्म-रक्षण के लिए यहाँ आमंत्रित करते हैं। सद्यो ह जातो वृषभः कनीनः प्रभत्भावदन्धसः सुतस्य। साधोः पिब प्रतिकामं यथा ते रसाशिरः प्रथम सोम्यस्य / / (3.48.1) उत्पन्न होते ही महाबलवान, सुन्दर व तरुण उन षभ ने अन्नदान करने वालों का तत्काल रक्षण किया। हे जिनेन्द्र वृषभ ! समता रस के अन्दर मिलाये मिश्रण का आप सर्वप्रथम पान पतिर्भव वृत्रहन्त्सनतानां गिरा विश्वायुर्वृषभो क्योधाः / आ नो गहि सख्येभिः शिवेभिर्महान्महीभिरुतिभिः सरण्यन / / (3.31.18) हे अज्ञान रूपी बादलों के विनाशक, सत्य और आनन्ददायक वाणियों के स्वामी पूर्ण आयु वाले (विश्वायु) महान वृषभ मित्रता के भाव से युक्त होकर तथा शिव मार्ग (मोक्ष मार्ग) का प्रतिपादन करने हेतु त्याग मार्ग की ओर जाते हुए हमारी ओर आईये। महाँ उग्रो वावृधे वीर्याय समाचक्रे वृषभः काव्येन। इन्द्रो भगो वाजदा अस्य गावः प्र जायन्ते दक्षिणा अस्यपूर्वीः / / 3.36.5) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org