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1. बुद्धि की निर्मलता, 2. प्रशस्त मनोभावों का प्राप्ति, 3. जिन शासन की रक्षा, 4. संशय की निवृति, 5 परिवादियों की शंका का निरसन, 6 तप-त्याग की वृद्धि और अतिचारों (दोषों) की शुद्धि ।
स्वाध्याय का साधक जीवन में स्थान
जैनधर्म में स्वाध्याय का अर्थ एवं स्थान
स्वाध्याय का जैन परम्परा में कितना महत्त्व रहा है, इस सम्बन्ध में मैं अपनी ओर से कुछ न कहकर उत्तराध्ययनसूत्र के माध्यम से ही अपनी बात को स्पष्ट करूँगा । उसमें मुनि की जीवन-चर्या की चर्चा करते हुए कहा गया है-
दिवसस्स धउरो भागे कुज्जा भिक्खू वियक्त्रणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसु घउसु वि ।। पदमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । asure भिक्खाधरियं पुणो घडत्थीए सज्झायं । । रति पि चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा राइभारसु धउसु वि ।। पढमं पोरिसि सज्झायं बीयं झियायई ।
सइयाए निद्दमोक्खं तु वउत्थी भुज्जो वि सज्झायं । ।
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उत्तराध्ययनसूत्र, 26/11, 12, 17, 18
मुनि दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करें, दूसरे प्रहर में ध्यान करें, तीसरे में भिक्षा-चर्या एवं दैहिक आवश्यकता की निवृत्ति का कार्य करें । पुनः चतुर्थ प्रहर में स्वाध्याय करें इसी प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में निद्रा व चौथे में पुनः स्वाध्याय का निर्देश है। इस प्रकार मुनि प्रतिदिन चार प्रहर अर्थात् 12 घंटे स्वाध्याय में रत रहे, दूसरे शब्दों में साधक जीवन का आधा भाग स्वाध्याय के लिये नियत था। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जैनपरम्परा में स्वाध्याय की महत्त्व प्राचीन काल से ही सुस्थापित रहा है, क्योंकि यही एक ऐसा माध्यम था जिसके द्वारा व्यक्ति के अज्ञान का निवारण तथा आध्यात्मिक विशुद्धि सम्भव थी।
सत्साहित्य के अध्ययन की दिशायें
सत् - साहित्य के पठन के रूप में स्वाध्याय की क्या उपयोगिता है ? यह सुस्पष्ट है। वस्तुतः सत्- साहित्य का अध्ययन व्यक्ति की जीवन दृष्टि को ही बदल देता है। ऐसे अनेक लोग हैं जिनकी सत् - साहित्य के अध्ययन से जीवन की दिशा ही बदल गयी । स्वाध्याय एक ऐसा माध्यम है, जो एकांत के क्षणों में हमें अकेलापन महसूस नहीं होने देता और एक सच्चे मित्र की भाँति सदैव साथ देता है और मार्ग-दर्शन करता है ।
वर्तमान युभ में यद्यपि लोगों में पढ़ने-पढ़ाने की रूचि विकसित हुई है, किन्तु हमारे पठन की विषय वस्तु सम्यक् नही है। आज के व्यक्ति के पठन-पाठन का मुख्य विषय पत्र-पत्रिकाएँ हैं।
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