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________________ न्यायकुमुदचन्द्र - २ 'कुछ ऐतिहासिक प्रश्नों पर भी लिखना आवश्यक है । पहला प्रश्न है अकलंक के समय का । पं० महेन्द्रकुमारजी ने 'प्रकलङ्कग्रंथत्रय' की प्रस्तावना में धर्मकीर्ति और उनके शिष्यों आदि के ग्रंथों की तुलना के आधार पर कलंक का समय निश्चित करते समय जो विक्रमार्कीय शक संवत् का अर्थ विक्रमीय संवत् न लेकर शक संवत् लेने की ओर संकेत किया है - वह मुझको भी विशेष साधार मालूम पड़ता है । इस विषय में पंडितजी ने जो धवलटीकागत उल्लेख तथा प्रो० हीरालालजी के कथन का उल्लेख प्रस्तावना ( पृष्ठ ५ ) में किया है वह उनकी कलंकग्रंथत्रय में स्थापित विचारसरणी का ही पोषक है । इस बारे में सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ पं० जयचन्द्रजी विद्यालंकार कार विचार भी पं० महेन्द्रकुमारजी की धारणा का पोषक है । मैं तो पहले से ही मानता आया हूँ कि कलंक का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध और नवीं शताब्दी पूर्वार्द्ध ही हो सकता है जैसा कि याकिनीसूनु हरिभद्र का है कलंक, हरिभद्र, तत्त्वार्थभाष्य टीकाकार सिद्धसेन गणि, ये प्रमाण में समसामयिक अवश्य हैं। आगे जो समन्तभद्र के कुछ कहना है उससे भी इसी समय की पुष्टि होती है । I । मेरी राय में सभी थोड़े बहुत समय के बारे में १. इसका प्रारंभ का भाग 'दार्शनिक मीमांसा' खण्ड में दिया है - पृष्ठ ६७ । २. वे भारतीय इतिहास की रूपरेखा ( पृ० ८२४-२६ ) में लिखते हैं"महमूद गजनवी के समकालीन प्रसिद्ध विद्वान यात्री अलबरूनी ने अपने भारत विषयक ग्रन्थ में शक राजा और दूसरे विक्रमादित्य के युद्ध की बात इस प्रकार लिखी है - 'शक संवत् अथवा शककाल का आरम्भ विक्रमादित्य के संवत् से १३५ वर्ष पीछे पड़ा है । प्रस्तुत शक ने उन ( हिन्दुनों ) के देश पर सिन्ध नदी और समुद्र के बीच, आर्या के उस राज्य को अपना निवासस्थान बनाने के बाद बहुत अत्याचार किये। कुछ लोगों का कहना है, वह अलमन्सूरा नगरी का शुद्र था, दूसरे कहते हैं, वह हिन्दू था ही नहीं और भारत में पश्चिम से आया था । हिन्दुओं को उससे बहुत कष्ट सहने पड़े । अन्त में उन्हें पूरब से सहायता मिली जब कि विक्रमादित्य ने उन पर चढ़ाई की, उसे भगा दिया और मुलतान तथा -लोनी के कोटले के बीच करूर प्रदेश में उसे मार डाला । तब यह तिथि प्रसिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229076
Book TitleNyaya Kumudchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf
Publication Year1957
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size139 KB
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