________________ 374 . जैन धर्म और दर्शन ११-सर्वज्ञत्व समर्थन प्रमाण शास्त्र में जैन सर्वज्ञवाद दो दृष्टियों से अपना खास स्थान रखता है। एक तो यह कि वह जीव-सर्वज्ञवाद है जिसमें हर कोई अधिकारी की सर्वज्ञत्व पाने की शक्ति मानी गई है और दूसरी दृष्टि यह है कि जैनपक्ष निरपवाद रूप से सर्वशवादी हो रहा है जैसा कि न बौद्ध परंपरा में हुआ है और न वैदिक परंपरा में। इस कारण से काल्पनिक, अकाल्पनिक, मिश्रित यावत् सर्वज्ञत्वसमर्थक युक्तियों का संग्रह अकेले जैन प्रमाणशास्त्र में ही मिल जाता है। जो सर्वज्ञत्व के संबन्ध में हुए भूतकालीन बौद्धिक व्यायाम के ऐतिहासिक अभ्यासियों के तथा सांप्रदायिक भावनावालों के काम की चीज है / 2. भारतीय प्रमाण शास्त्र में हेमचन्द्र का अर्पण .. परंपराप्राप्त उपर्युक्त तथा दूसरे अनेक छोटे-बड़े तत्त्वज्ञान के मुद्दों पर हेमचन्द्र ने ऐसा कोई विशिष्ट चिंतन किया है या नहीं और किया है तो किस 2 मुद्दे पर किस प्रकार है जो जैन तकशास्त्र के अलावा भारतीय प्रमाणशास्त्र मात्र को उनकी देन कही जा सके। इसका जवाब हम 'प्रमाणमीमांसा' के हिंदी टिप्पणों में उस 2 स्थान पर ऐतिहासिक तथा तुलनात्मक दृष्टि द्वारा विस्तार से दे चुके हैं। जिसे दुहराने की कोई जरूरत नहीं। विशेष जिज्ञासु उस उस मुद्दे के टिप्पणों को देख लें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org