________________ आवश्यक क्रिया 165 सूत्र भी रचे हैं, जिससे कि अधिकारी लोग खास नियत समय पर उन सूत्रों के द्वारा 'श्रावश्यक-क्रिया' को याद कर अपने आध्यात्मिक जीवन पर दृष्टिपात करें / अतएव 'आवश्यक क्रिया के दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, आदि पाँच भेद प्रसिद्ध हैं। 'आवश्यक-क्रिया' के इस काल-कृत विभाग के अनुसार उसके सूत्रों में भी यत्र-तत्र भेद आ जाता है / अब देखना यह है कि इस समय जो 'श्रावश्यक-सूत्र' है, वह कब बना है और उसके रचयिता कौन हैं ? पहले प्रश्न का उत्तर यह है कि 'श्रावश्यक-सूत्र' ईस्वी सन् से पूर्व पाँचवीं शताब्दि से लेकर चौथी शताब्दि के प्रथम पाद तक में किसी समय रचा हुश्रा होना चाहिए / इसका कारण यह है कि ईस्वी सन् से पूर्व पाँच सौ छब्बीसवें वर्ष में भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ | वीर-निर्वाण के बीस वर्ष बाद सुधर्मा स्वामी का निवाण हुआ। सुधर्मा स्वामी गणधर थे / 'श्रावश्यक-सूत्र' न तो तीर्थंकर की ही कृति है और न गणधर की। तीर्थकर की कृति इसलिए नहीं कि वे अर्थ का उपदेशमात्र करते हैं, सूत्र नहीं रचते / गणधर सूत्र रचते हैं सही, पर 'श्रावश्यक-सूत्र' गणधर-रचित न होने का कारण यह कि उस सूत्र की गणना अङ्गबाह्यश्रुत में है। अङ्ग बाह्यश्रुत का लक्षण श्री उमास्वाती ने अपने तत्त्वार्थ-भाष्य में यह किया है कि जो श्रत, गणधर की कृति नहीं है और जिसकी रचना गणधर के आद के परम मेधावी आचार्यों ने की है, वह 'अङ्गबाह्यश्रुत' कहलाता है / ' ऐसा लक्षण करके उसका उदाहरण देते समय उन्होंने सबसे पहले सामायिक आदि छह 'आवश्यकों' का उल्लेख किया है और इसके बाद दशवैकालिक आदि अन्य सूत्रों का / यह ध्यान रखना चाहिए दशवैकालिक, श्री शय्यंभव सूरि जो सुधर्मा स्वामी के बाद तीसरे श्राचार्य हुए, उनकी कृति है / अङ्गबाह्य होने के कारण 'आवश्यक-सूत्र', गणधर श्री सुधर्मा स्वामी के बाद के किसी आचार्य का रचित माना जाना चाहिए। इस तरह उसके रचना के काल की 1- गणधरानन्तर्यादिभिस्त्वत्यन्तविशुद्धागमैः परमप्रकृष्टवाङ्मतिशक्तिभिराचार्य: कालसंहननायुर्दोषादल्पशक्तीनां शिष्याणामनुग्रहान यत्प्रोक्तं तदङ्गबाह्यमिति / --तत्त्वाथे-अध्याय१, सूत्र 20 का भाष्य / २--अङ्गबाह्यमनेकविधम् / तद्यथा—सामायिक चतुर्विंशतिस्तवो वन्दनं प्रति. क्रमणं कायव्युत्सर्गः प्रत्याख्यानं दशकालिकमुत्तराध्यायाः दशाः कल्पव्यवहारौ निशीथमृषिभाषितान्येवमादि / --तत्वार्थ-अ- 1, सूत्र 20 का भाष्य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org