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निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय
श्रमण निर्ग्रन्थ धर्म का परिचय
ब्राह्मण या वैदिक धर्मानुयायी संप्रदाय का विरोधी संप्रदाय श्रमण संप्रदाय कहलाता है, जो भारत में सम्भवतः वैदिक संप्रदाय का प्रवेश होने के पहले ही किसी न किसी रूप में और किसी न किसी प्रदेश में अवश्य मौजूद था । श्रमण सम्प्रदाय की शाखाएँ और प्रतिशाखाएँ अनेक थीं, जिनमें सांख्य, जैन, बौद्ध, आजीवक आदि नाम सुविदित हैं। पुरानी अनेक श्रमण संप्रदाय की शाखाएँ एवं प्रतिशाखाएँ जो पहले तो वैदिक संप्रदाय की विरोधिनी रहीं पर वे एक या दूसरे कारण से धीरे धीरे बिलकुल वैदिक संप्रदाय में घुलमिल गयी हैं । उदाहरण के तौर पर हम वैष्णव और शैव संप्रदाय का सूचन कर सकते हैं। पुराने वैष्णव और शैव श्रागम केवल वैदिक संप्रदाय से भिन्न ही न थे पर उसका विरोध भी करते थे। और इस कारण से वैदिक संप्रदाय के समर्थक आचार्य भी पुराने वैष्णव और शैव आगमों को वेदविरोधी मानकर उन्हें वेदबाह्य मानते थे । पर श्राज हम देख सकते हैं कि वे ही वैष्णव और शैव संप्रदाय तथा उनकी अनेक शाखाएँ बिलकुल वैदिक सम्प्रदाय में सम्मिलित हो गई हैं । यही स्थिति सांख्य संप्रदाय की है जो पहले वैदिक माना जाता था, पर आज वैदिक माना जाता है । ऐसा होते हुए भी कुछ श्रमरा संप्रदाय अभी ऐसे हैं जो खुद अपने को वैदिक ही मानते - मनवाते हैं और वैदिक विद्वान् भी उन सम्प्रदायों को अवैदिक ही मानते आए हैं। ऐसा क्यों हुआ ? यह प्रश्न बड़े महत्त्व का है । पर इसकी विशेष चर्चा का यह स्थान नहीं है । यहाँ तो इतना ही प्रस्तुत है कि पहले से अभी तक बिलकुल वैदिक रहने और कहलाने वाले संप्रदाय अभी जीवित हैं । इन सम्प्रदायों में जैन और बौद्ध मुख्य हैं । यद्यपि इस जगह श्राजीवक संप्रदाय का भी नाम दिया जा सकता है, पर उसका साहित्य और इतिहास स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध न
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