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योगशास्त्र और जैनदर्शन का सादृश्य मुख्यतया तीन प्रकार का है । २ शब्द का, २ विषय का और ३ प्रक्रिया का ।
१ मूल योगसूत्र में ही नहीं किन्तु उसके भाष्यतक में ऐसे अनेक शब्द हैं जो जैनेतर दर्शनों में प्रसिद्ध नहीं हैं, या बहुत कम प्रसिद्ध हैं, किन्तु जैन शास्त्र में खास प्रसिद्ध हैं । जैसे-भवप्रत्यय, १ सवितर्क सविचार निर्विचार, महाव्रत, 3 कृत कारित अनुमोदित ४, प्रकाशावरण", सोपक्रम निरुपक्रम, वज्रसंहनन, केवली, कुशल, ज्ञानावरणीय कर्म १०, सम्यग्ज्ञान ११,
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योगसू. १ - १६ । 'मत्रप्रत्ययो
"
१ " भवप्रत्ययो विदेह प्रकृततिलयानाम्"
नारकदेवानाम्' तत्त्वार्थ अ. १-२२ ।
२ ध्यान विशेष अर्थ में ही जैनशास्त्र में ये शब्द इस प्रकार हैं 'एकाश्रये सवितर्के पूर्वे' ( तत्त्वार्थ श्र. ६ - ४३ ) ' तत्र सविचारं प्रथमम् ' भाष्य ' श्रविचाएं द्वितीयम्' तत्त्वा - ६-४४ । योगसूत्र में ये शब्द इस प्रकार आये हैं— 'तत्र शब्दार्थज्ञानत्रिकल्पैः संकोर्खा सवितर्का समापत्तिः' 'स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्ये कार्थमात्रनिर्माता निर्वितर्का' 'एतयैव सविचारा निविचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता' १-४२, ४२, ४४ |
३ जैनशास्त्र में मुनि सम्बन्धी पाँच यमों के लिये यह शब्द है | 'सर्वतो विरतिर्महाव्रतमिति' तत्वार्थ श्र० ७ -२ भाष्य । अर्थ में योगसूत्र २ - ३१ में है ।
४ ये शब्द जिस भाव के लिये योगसूत्र २-३१ में प्रयुक्त हैं, उसी भाव में जैनशास्त्र में भी आते हैं, अन्तर सिर्फ इतना है कि जैनग्रन्थों में अनुमोदित के मैं बहुधा अनुमतशब्द प्रयुक्त होता है । देखो -तत्त्वार्थ, श्र, ६-६ । ५. यह शब्द योगसूत्र २ - ५२ तथा ३-४३ में है । इसके स्थान में जैनI शास्त्र में 'ज्ञानावरण' शब्द प्रसिद्ध है । देखो तत्वार्थ श्र. ६-११ आदि ।
स्थान
६ ये शब्द योगसूत्र ३ - २२ में हैं । जैन कर्मविषयक साहित्य में ये शब्द बहुत प्रसिद्ध हैं । तत्त्वार्थ में भी इनका प्रयोग हुआ है, देखो -२-५२ भाष्य ! १ ७ यह शब्द योगसूत्र ( ३ - ४६ ) में प्रयुक्त है । इसके स्थान में जैन ग्रन्थों में 'वज्रऋषभनाराचसंहनन' ऐसा शब्द मिलता है । देखो तत्वार्थ ( श्र० ८ - १२ ) भाष्य ।
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बहुत ही प्रसिद्ध यही शब्द उसी
८ योगसूत्र (२-२७ ) भाष्य, तवार्थ ( ० ६–१४ ) । ६ देखो योगसूत्र (२-२७ ) भाष्य, तथा दशवैकालिकनिर्युकि गाथा १८६ | १० देखो योगसूत्र ( २ - ५१ ) भाष्य तथा आवश्यक निर्युक गाथा ८६३ । ११ योगसूत्र (२-२८ ) भाग्य, तत्रार्थ ( श्र० १-१ ) ।
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