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२५.३
योगशास्त्र का विषय-विभाग उसके अन्तिम साध्यानुसार ही है । उसमें गौण मुख्य रूप से अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित हैं, पर उन सबका संक्षेप में वर्गीकरण किया जाय तो उसके चार विभाग हो जाते हैं । १ हेय २ हेय-हेतु ३ हान ४ हानोपाय | यह वर्गीकरण स्वयं सूत्रकार ने किया है । और इसीसे भाष्यकार ने योगशास्त्र को चारव्यूहात्मक कहा' है । सांख्यसूत्र में भी यही वर्गीकरण है । बुद्ध भगवान् ने इसी चतुर्व्यूह को आर्यसत्य नाम से प्रसिद्ध किया है । और योगशास्त्र के आठ योगाङ्गों की तरह उन्होंने चौथे आर्य-सत्य के साधनरूप से श्रार्य अष्टाङ्गमार्ग का उपदेश किया है ।
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दुःख हेय है, विद्या हेय का कारण है, दुःख का प्रात्यन्तिक नाश हान है, और विवेकख्याति हान का उपाय है ।
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उक्त वर्गीकरण की अपेक्षा दूसरी रीति से भी योग शास्त्र का विषय-विभाग किया जा सकता है । जिससे कि उसके मन्तब्यों का ज्ञान विशेष स्पष्ट हो । यह विभाग इस प्रकार है-१ हाता २ ईश्वर ३ जगत् ४ संसार - मोक्षका स्वरूप, और उसके कारण ।
१ हाता दुःख से छुटकारा पानेवाले द्रष्टा अर्थात् चेतन का नाम है । योगःशास्त्र में सांख्य वैशेषिकट, नेयायिक, बौद्ध, जैन और पूर्णप्रज्ञ
१ यथा चिकित्साशास्त्रं च चतुब्यू इम् - रोगो रोगहेतुरारोग्यं भैषज्यमिति एवमिदमपि शास्त्रं चतुर्व्यूहमेव । तद्यथा - संसारः संसारहेतुर्मोक्षो मोक्षोपाय इति । तत्र दुःखहुलः संसारो हेयः । प्रधानपुरुषयोः संयोगो हेयहेतुः । संयोगस्यात्यन्तिकी निवृत्तिर्ज्ञानम् । हानोपायः सम्यग्दर्शनम् । पा० २ सू० १५ भाप्य । २ सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाचा, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् श्राजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि । बुद्धलीलासार संग्रह, पृ० १५० ।
३ 'दुःखं हेयमनागतम्' २ - १६ यो. सू ।
४ 'द्रष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः २ - १७ । 'तस्य हेतुरविद्या' २ - २४ यो. सू. । ५. 'तदभावात् संयोगाभावो हानं तद् दृशेः कैवल्यम्' २ - २६
मो. सू. ।
६ 'विवेकख्यातिर विप्लवा हानोपायः २-२६. यो. सू ।
७ 'पुरुषत्वं सिद्ध' ईश्वरकृष्ण कारिका १८ ।
८' व्यवस्थातो नाना' - ३-२-२० वैशेषिक दर्शन । 'पुद्गल जीवास्त्वनेकद्रव्याणि " -५ -५ तत्त्वार्थ सूत्र - भाष्य ।
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