________________
३२
पहले अपने आपको तैयार किया है--बदला है, और बदलनेके रास्तोंका — भेदों का अनुभव किया है । इसीसे उनकी वाणीका असर पड़ता है । उनके विषय में कवि और साहित्यकार स्व० मेघाणीने 'माणसाईना दीवा' ( मानवता के दीप ) नामक परिचय पुस्तक लिखी है। एक और दूसरी पुस्तक श्री बलभाई मेहताकी लिखी हुई है ।
Į
दूसरे व्यक्ति हैं सन्त बाख, जो स्थानकवासी जैन साधु हैं । वे मुँहपर मुँहपत्ती, हाथमें रजोहरण श्रादिका साधु-वेष रखते हैं, किन्तु उनकी दृष्टि बहुत ही आगे बढ़ी हुई है । वेष और पन्थके बाड़ों को छोड़कर वे किसी अनोखी दुनिया में विहार करते । इसीसे आज शिक्षित और अशिक्षित, सरकारी या गैरसरकारी, हिन्दू या मुसलमान स्त्री-पुरुष उनके वचन मान लेते हैं । विशेष रूपसे 'भालकी पट्टी' नामक प्रदेश में समाज सुधारका कार्य वे लगभग बारह वर्षोंसे कर रहे हैं । उस प्रदेश में दो सौसे अधिक छोटे-मोटे गाँव हैं । वहाँ उन्होंने समाजको बदलनेके लिए जिस धर्म और नीतिकी नींवपर सेवाकी इमारत शुरू की है, वह ऐसी वस्तु है कि उसे देखनेवाले और जाननेवालेको आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता । मन्त्री, कलेक्टर, कमिश्नर आदि सभी कोई अपना-अपना काम लेकर सन्त बालके पास जाते हैं और उनकी सलाह लेते हैं। देखने में सन्तबालने किसी पन्थ, वेष या बाह्य श्राचारका परिवर्तन नहीं किया परन्तु मौलिक रूपमें उन्होंने ऐसी प्रवृत्ति शुरू की है कि वह उनकी श्रात्मामें अधिवास करनेवाले धर्म और नीति- तत्त्वका साक्षात्कार कराती है और उनके समाजको सुधारने या बदलनेके दृष्टिबिन्दुको स्पष्ट करती हैं। उनकी प्रवृत्ति में जीवन क्षेत्रको छूनेवाले समस्त विषय या जाते हैं । समाजकी सारी काया ही कैसे बदली जाए और उसके जीवन में स्वास्थ्यका, स्वावलम्बनका वसन्त किस प्रकार प्रकट हो, इसका पदार्थ-प -पाठ वे जैन साधुकी रीतिसे गाँव-गाँव घूमकर, सारे प्रश्नों में सीधा भाग लेकर लोगोंको दे रहे हैं । इनकी विचारधारा जानने के लिए इनका 'विश्व वात्सल्य' नामक पत्र उपयोगी है और विशेष जानकारी चाहनेवालों को तो उनके सम्पर्क में ही खाना चाहिए ।
तीसरे भाई मुसलमान हैं। उनका नाम है अकबर भाई। उन्होंने भी, अनेक वर्ष हुए, ऐसी ही तपस्या शुरू की है । बनास तटके सम्पूर्ण प्रदेश में उनकी प्रवृत्ति विख्यात है । वहाँ चोरी और खून करनेवाली कोली तथा ठाकुरोकी जातियाँ सैकड़ों वर्षोंसे प्रसिद्ध हैं । उनका रोजगार ही मानों यही हो गया है । अकबर भाई इन जातियों में नव चेतना लाए हैं । उच्चवर्णके ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य भी जो कि अस्पृश्यता मानते चले आए हैं और दलित वर्गको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org