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पंचांग की तेरश औदयिकी चतुर्दशी होती है और चतुर्दशी औदयिकी पूर्णिमा या अमावास्या होती है।
पूर्णिमा-अमावास्या का क्षय होने पर पंचांग में चतुर्दशी होने पर भी त्रयोदशी के दिन चतुर्दशी की जाती है । चतुर्दशी के दिन पूर्णिमा या अमावास्या की जाती है । वह "क्षये पूर्वा०" वचन के आधार पर ही की जाती है । अर्थात् "क्षये पूर्वा०" वचन के आधार पर ही पंचांग की तेरश औदयिकी चतुर्दशी होती है और पंचांग की चतुर्दशी औदयिकी पूर्णिमा या अमावास्या होती है । अत एव पूर्व के महान पुरुष आराधना में इस प्रकार की प्रणालिका अविच्छिन्न रूप से मान्य करते रहे हैं।
पर्व-अपर्वतिथि की वृद्धि हो तब तिथि और तिथि की आराधना की
एकतिथि पक्ष की शुद्ध प्रणालिका । लौकिक पंचांग में 1 (प्रतिपदा) की वृद्धि होने परअर्थात् प्रतिपदा दो होने पर प्रतिपदा की आराधना दूसरी प्रतिपदा के दिन की जाती है । बेसतुं वर्ष या बेसता महिनाप्रथम प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है और उसी निमित्त का स्नात्र आदि भी प्रथम प्रतिपदा के दिन किया जाता है।
2 (बीज) की वृद्धि होने पर 1 दो की जाती है किन्तु दो बीज नहीं की जाती है । पंचाग की पहली बीज के दिन 1 औदयिकी नहीं होने पर भी, उसी दिन दूसरी एकम की जाती है और वह औदयिकी 1 गिनी जाती है । अत एव दूसरी एकम के दिन एकम की आराधना की जाती है । किन्तु बेसता वर्ष या बेसता महिना यहाँ भी पहली एकम के दिन किया जाता है।
3 (तृतीया) की वृद्धि होने पर दो तृतीया की जाती है और तृतीया की आराधना दूसरी तृतीया के दिन की जाती है।
4 (चतुर्थी) की वृद्धि होने पर चतुर्थी की वृद्धि की जाती है।
5 (पंचमी) की वृद्धि होने पर दो चतुर्थी की जाती है और चतुर्थी की आराधना पहली पंचमी के दिन दूसरी चतुर्थी मानकर की जाती है किन्तु दो पंचमी
नहीं की जाती है । इस प्रकार लौकिक पंचांग में भाद्रपद शुक्ल पंचमी दो होने पर भी आराधना में शास्त्रानुसारी अहमदाबाद डहेळा के उपाश्रय की प्रणालिका अनुसार दो चतुर्थी की जाती है और दूसरी चतुर्थी अर्थात् पंचांग की पहली पंचमी को दूसरी चतुर्थी मानकर उसी दिन संवत्सरी महापर्व की आराधना की जाती है । दो तृतीया और दो पंचमी भी नहीं की जाती है।
6 (छ) की वृद्धि होने पर दो छ? की जाती है और छठ की आराधना दूसरी छठ के दिन की जाती है ।
7 (सप्तमी) की वृद्धि होने पर दो सप्तमी की जाती है और सप्तमी की आराधना दूसरी सप्तमी के दिन की जाती है ।
8 (अष्टमी) की वृद्धि होने पर दो सप्तमी की जाती है और सप्तमी की आराधना पंचांग की पहली अष्टमी को दूसरी सप्तमी मानकर की जाती है किन्तु अष्टमी दो नहीं की जाती है।
9 (नवमी) की वृद्धि होने पर दो नवमी की जाती है और नवमी की आराधना दूसरी नवमी के दिन की जाती है ।
10 (दशम) की वृद्धि होने पर दो दशम की जाती है और दशम की आराधना दूसरी दशम के दिन की जाती है ।
___11 (एकादशी) की वृद्धि होने पर दो दशम करके दूसरी दशम के दिन ही पोष दशम की आराधना की जाती है।
11 (एकादशी) की वृद्धि होने पर दो दशम की जाती है किन्तु दो एकादशी नहीं की जाती है, दशम की आराधना पंचांग की पहली एकादशी को दूसरी दशम मानकर उसी दिन ही दशम की आराधना की जाती है । पंचांग में यदि वैशाख शुक्ल एकादशी की वृद्धि होने पर श्री महावीरस्वामी के केवळज्ञान कल्याणक की आराधना पंचांग की पहली एकादशी को दसरी दशम मानकर उसी दिन की जाती है । ठीक उसी तरह माघ शुक्ल-11 दो हो तो भी पंचांग की औदयिकी 10 के दिन सालगिराह मनायी जाती नहीं है किन्तु पंचांग की पहली 11 को दूसरी 10