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यह सुनकर बदामीसाहिब ने कबूल किया कि महाराज साहिब की बात सही है । बाद में उन्हों ने पूछा कि तो जाहिर व मौखिक शास्त्रार्थ कैसे किया जाय हमने कहा कि जाहिर व मौखिक शास्त्रार्थतीन में से किसी एक प्रकार हो सकता है । 1. राजसभा में रखना हो तो भी हो सकता है, एक ओर भावनगर स्टेट है, दूसरी ओर पालीताणा स्टेट है और तीसरा वलभीपुर स्टेट है । जहाँ पर करना हो वहाँ हम तैयार है ।
यह सुनकर बदामी साहिब ने कहा कि ऐसा होना अभी तो संभव नहीं है।
2. तो दयाळु दादा की पवित्र छाया में पालीताणा में हिन्दुस्तान का सकळ संघ सम्मिलित करें और वहाँ चर्विध संघ की उपस्थिति में जाहिर व मौखिक शास्त्रार्थ किया जाय । हमने जाहिर व मौखिक शास्त्रार्थ की दूसरी रीत बतायी।
बदामी साहिब ने कहा ऐसा करने में बहुत तुफान होने की संभावना है।
इसके प्रत्युत्तर में हमने कहा कि इसमें तुफान कैसे हो सकता है दो आचार्य शास्त्रार्थ करें और बाकी सकळ संघ शांति से स्ने । और अपने अपने पक्षवाले को शांति रखने की अपील करें यदि इस प्रकार शास्त्रार्थ न करना हो तो
___3. यहाँ आये हुये तुम पांच और छठे शेठ श्रीकस्तूरभाई इन छः की उपस्थिति में जाहिर व मौखिक शास्त्रार्थ किया जाय और न्यायाधीश उसका उसी समय निर्णय जाहिर करें । जो दोनों को कबूल होवे । इतना तो होना ही चाहिये ।
तुरत शेठ जीवाभाई ने कहा कि आपका जो विचार हो वह आप लिखकर दें । अतः हमने जीवाभाई की उपस्थिति में ही ड्राफ्ट तैयार किया और इसका वांचन करके उन लोगों को दिया । वह ड्राफ्ट इस प्रकार था ....
समुदाय ने जो की थी, वह शास्त्र व श्रीविजयदेवसूरीश्वरजी महाराज की परंपरा से विरुद्ध है । अतः उस विषय में सर्वप्रथम मौखिक और जाहिर शास्त्रार्थ विजय रामचंद्रसूरिजी को हमारे साथ करना पड़ेगा । उन्हों ने तपागच्छ के सर्व आचार्यों को बिना पूछे संवत्सरी अलग की होने से सर्वप्रथम प्रश्न हम उनको पूछेगे, जिनका उत्तर उनको मौखिक ही देना पड़ेगा । बाद में इस विषय में वे भी हमसे प्रश्न पूछेगे । बाद में तिथि संबंध में भी इस प्रकार शास्त्रार्थ किया जायेगा । और उसी समय न्यायाधीश जो फैसला सुनायेगा, वह हम दोनों को मान्य करना पड़ेगा। यद्यपि न्यायाधीश के रूप में दोनों पक्ष को संमत व्यक्ति नियुक्त होना चाहिये ऐसा हम मानते हैं किन्तु ठराव के अनुसार मध्यस्थ के रूप में आप जो नियुक्त करेंगे उसमें हमारा विरोध अनुपयुक्त होने से हम विरोध करते नहीं है।
मध्यस्थ अर्थात् न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किये गये विद्वान हमारे शास्त्रार्थ के विषय को समझने में समर्थ है कि नहीं और प्रामाणिक है कि नहीं, इस बात की परीक्षा हमें करनी होगी।
शास्त्रार्थ के समय दोनों पक्ष में से जिनको भी उपस्थित रहना हो वे भागले सकते हैं।
यही डाफ्ट लेकर पांचो ही श्रावक रवाना हये ।
यही ड्राफ्ट वि. सं. 1999 में बोटाद में परम पूज्य शासनसमाट परमगुरु भगवंत श्री के पास उनकी संमति व सूचन लेने के लिये आये ये शेठ श्रीकस्तूरभाई लालभाई तथा शेठ श्रीचमनलाल लालभाई को भी दिया था । शुरु में शेठ श्रीकस्तूरभाई ने बताया कि इस प्रकार ड्राफ्ट करके दोनों आचार्यों के हस्ताक्षर लिये हैं और इस प्रकार शास्त्रार्थ रखा गया है, तो इस विषय में आपकी क्या राय व सूचन है ?
प्रत्युत्तर में हमने कहा कि1. सर्वप्रथम संघ में ऐसी अलग प्रवृत्ति क्यों हो ही सकती है? चाहे मैं हूँ या अन्य हो । यदि कोई संघ से अलग प्रवृत्ति करें तो संघ के अग्रणी को उनके पास उसकी स्पष्टता मांगना चाहिये । यही अपनी दुर्बलता है।
ता. 3-5-1942 विक्रम संवत् 1992 के वर्ष में शनिवार की संवत्सरी तथा वि. सं. 1993 के वर्ष में बुधवार की संवत्सरी विजयरामचंद्रसूरिजी ने तथा उनके गुरुजी ने और उनके