________________ 2. तपागच्छीय तिथिप्रणालिका लेखकः पू. आचार्य श्रीविजयनंदनसूरिजी 3. आचार्य श्रीविजयनंदनसूरि स्मारक ग्रंथ संपादकः श्री रतिलाल दीपचंद देसाई 4. आचार्य श्रीविजयनंदनसूरिजी लेखकः मुनि श्रीशीलचंद्रविजयजी (हाल आचार्य) उसके अलावा आचार्य श्रीरामचंद्रसूरिजी द्वारा आचरित कूटनीति. माया-कपट, प्रपंच को जानने के लिये शासनकंटकोद्धारक आचार्य श्री हंससागरसूरिजी के ग्रंथों का अवलोकन कर लेना / श्री विजयदेवसूरसंघ सामाचारी में माननेवाले सभी तपागच्छीय साधु-साध्वी समुदाय, श्रावक-श्राविका समुदाय सब निम्नोक्त नियमों का पालन करीब 350-400 साल से अर्थात् आचार्य श्रीविजयदेवसूरीश्वरजी महाराज के काल से करते आ रहे हैं / केवल दो तिथिवाला ये नया आचार्य श्री रामचंद्रसूरिजी का समुदाय व उसे माननेवाले साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविका उससे विपरीत आचरण करते हैं / श्रीदेवसूरसंघसामाचारी के नियम निम्न प्रकार से हैं / 1. बारह पर्व तिथियों की क्षय-वृद्धि करना मना है। 2. श्री विजय देवसूरसंघ सामाचारी में माननेवाले आचार्यों द्वारा संमेलन में किये गये ठराव अनुसार संवत्सरी महापर्व की आराधना करना / 3. नवांगी गुरुपूजन मत कराना 4. पाक्षिक, चातुर्मासिक व संवत्सरी प्रतिक्रमण के अंत में संतिकरं स्तोत्र का पाठ करना / 5. जन्म संबंधी सुतक में सगोत्र जन्म हो, पत्नी अपने मायके में हो और वहाँ कोई जाता न हो तो 12 दिन प्रभुपूजा मत करना / और साधु-साध्वी को आहार-पानी वहोराना मत / सामायिक व प्रतिक्रमण में सूत्र जोर से मत बोलना / सुतकवाली स्त्री को व बालक को स्पर्श करते हो तो 42 दिन प्रभुपूजा आदि मत करना / 6. मरण के सुतक में सगोत्र हो तो 12 दिन, सगोत्र न हो और मृतक का स्पर्श किया हो तो 3 दिन और परंपरित स्पर्श हुआ हो तो 24 घंटे तक पूजा मत करना, सामायिक प्रतिक्रमण में सूत्र जोर से मत बोलना / मृत्यु के बारह दिन बाद ही अंतराय कर्म की पूजा, भावयात्रा, पूजन आदि कराना 7. सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के वख्त देरासर मांगलिक रखना / 8. गुरुपूजन का द्रव्य गुरु वैयावच्च में ले जाना / 9. चातुर्मास में सिद्धाचल-शत्रुजय की यात्रा मत करना और करने की प्ररूपणा भी मत करना /