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Vol. XXXIX, 2016
महोपाध्याय क्षमाकल्याण जी रचित साहित्य
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महोपाध्याय क्षमाकल्याण जी म. द्वारा रचित साहित्य का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है - सर्वप्रथम वि.सं.1829 में भूधातु पर विस्तृत विवेचन कर सूक्ष्म मेधा का परिचय सतीर्थियों को कराया । शास्त्र चर्चा
महोपाध्यायजी शास्त्रों के रसिक एवं ज्ञाता थे । इस कारण शास्त्र चर्चा व शास्त्रार्थ-शक्ति के नैसर्गिक गुण ने प्रकट होकर, विविध स्थानों पर अपना पूर्ण रंग दिखाया । क्षमाकल्याण चरित्र के रचयिता पंडित नित्यानंद शास्त्री ने इस संदर्भ में लिखा है कि ।
निर्मर्षणः सिंह इवोन्मुखः क्षमा, कल्याणकः संस्कृत-गर्जितं दधत् । उद्दण्डशुण्डार-मिवाशु पण्डितं, सम्यग् विजिग्येऽस्खलितोरुयुक्तिभिः ॥ 16 ॥
अर्थात् 'श्री क्षमाकल्याण जी महाराज संस्कृत में सिंह के समान गर्जना करते हुए प्रतिपक्षी पंडित को इस प्रकार पराजित किया करते थे जैसे कोई दहाड़ता हुआ सिंह, उदंड सुण्ड वाले हाथी को तत्काल पछाड़ देता है।
उपाध्यायजी का सैद्धान्तिक ज्ञान इतना गम्भीर और व्यापक था कि जटिल प्रश्नों के उत्तर देने में वे कभी नहीं हिचके । गच्छ के प्रतिष्ठित आचार्य भी उनकी सैद्धान्तिक सम्मति को बहुत महत्त्व देते थे । अन्य गच्छ के विशिष्ट विद्वान् भी उनकी सम्मति को बहुत ही आदर व श्रद्धा की दृष्टि से मानते थे।
चर्चा ग्रंथों में प्रश्नोत्तर सार्धशतक, प्रश्नोत्तर शतक आदि प्रमुख हैं। जिनमें आगम पाठ, चूर्णी, वृत्ति, नियुक्ति के उद्धरणों के द्वारा अनेक जिज्ञासाओं का शास्त्रीय उत्तर प्रदान किया गया है । चरित्र ग्रंथ निर्माण
श्री क्षमाकल्याण जी महाराज का संस्कृत-भाषा पर स्पृहणीय अधिकार था ।
पाठक प्रवर श्री रूपचंद्रजी गणि विरचित गौतमीय काव्यम् पर वि.सं.1852 में गौतमीयप्रकाश नामक विशद व्याख्या में जैन धर्म की मूल मान्यताओं का उल्लेख करते हुए बौद्ध, वेदांत एवं न्यायादि दर्शनों का जिस तरह खंडन किया हैं, उससे वृत्तिकार के प्रकांड पांडित्य का ज्ञान होता है। यशोधर चरित्र
इस कृति में अपने पुत्र को माता द्वारा मुर्गे का मांस खिलाने से हुए पाप का प्रायश्चित करते हुए यशोधर के 10 भवों का वर्णन किया है। चरित्र में कथा का सरल व सरस प्रवाह कई स्थानों पर अलंकारिक बनकर पाठक को बांधे रखता है । इसका रचना संवत् 1839 है । समरादित्य चरित्र
जीवन के उत्तरार्ध में वि.सं.1872 में समरादित्य चरित्र का लेखन प्रारंभ किया था। अस्वस्थता के बीच भी साहित्य रचना का अनवरत कार्य आपकी श्रुतभक्ति को प्रदर्शित करता है। इस चरित्र के