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का अर्थ है राशि /समूह। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय ये पांच अस्तिकाय हैं। अस्तिकाय का अर्थ है बहुप्रदेशी। जिनके टुकड़े न हो सके ऐसे अविभागी प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते हैं। काल अस्तिकाय नहीं है। लोक में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय एक-एक स्कंध है, जीव अनंत है और पुद्गल अनंत स्कंध है। धर्म, अधर्म और आकाश के असंख्य प्रदेश हैं, एक जीव के असंख्य प्रदेश हैं और पुद्गल के अनंतानंत परमाणु हैं। इनका विशेष वर्णन नीचे दिया गया है। 1.4 द्रव्य के गुण
गुण वे हैं जो एक मात्र द्रव्य के आश्रित रहते हैं। गुण स्वयं निर्गुण है। गुण द्रव्य का व्यवच्छेदक धर्म है। वह अन्य द्रव्यों में पृथक सत्ता स्थापित करता है। प्रत्येक पदार्थ में अनन्त गुण होते हैं। पदार्थों में अनन्त गुण (धर्म) माने बिना वस्तु की सिद्धी नहीं होती।
गुण दो प्रकार के हैं। साधारण गुण और विशेष गुण। साधारण गुणों से द्रव्य का अस्तित्व एवं विशेष गुणों से उसका वैशिष्ट्य ज्ञात होता है। द्रव्यों के सामान्य गुण दस हैं और विशेष गुण सोलह हैं। जो गुण एक से अधिक द्रव्य में पाये जाते है वे सामान्य गुण है। विशेष गुण किसी एक द्रव्य में पाया जाता है। 1.4.1 सामान्य गुण
1) अस्तित्व - जिस गुण के कारण द्रव्य का कभी विनाश न हो। 2) वस्तुत्व – जिस गुण के कारण द्रव्य कोई न कोई अर्थ क्रिया करता रहे। 3) द्रव्यत्व - जिस गुण के कारण द्रव्य सदा एक सरीखा न रहकर नवीन-नवीन पर्यायों को
धारण करता है। 4) प्रमेयत्व - जिस गुण के कारण द्रव्य ज्ञान द्वारा जाना जा सके। 5) प्रदेशत्व - जिस गुण के कारण द्रव्य क्षेत्रता को प्राप्त हो अर्थात् जिस गुण के कारण
द्रव्य में कुछ न कुछ आकार हो। 6) अगुरूलघुत्व - जिस गुण के कारण द्रव्य का कोई आकार बना रहे, द्रव्य के अनंत गुण
बिखर कर अलग न हो जाएं अर्थात् एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप नहीं होता, एक गुण दूसरे गुणरूप नही होता। अगुरुलघुत्व द्रव्य के स्वरूपप्रतिष्ठित का कारणभूत स्वभाव है। 7) चेतनत्व - अनुभूति का नाम चेतना है। जिस शक्ति के निमित्त से स्व-पर की अनुभूति
होती है वह चेतना गुण है। 8) अचेतनत्व – जड़त्व को अचेतन कहते हैं। चेतना का अभाव ही अचेतना है। 9) मूर्तत्व – रूपादि भाव को अर्थात् स्पर्श, रस, गंध, वर्ण भाव मूर्त्तत्व भाव है। 10) अमूर्तत्व - स्पर्श, रस, गंध, वर्ण से रहित भाव अमूर्तत्व भाव है।
उपरोक्त दस सामान्य गुणों में से प्रत्येक द्रव्य में आठ-आठ गुण पाये जाते हैं और दो-दो नहीं पाये जाते। जीव में अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, अगुरूलघुत्व, चेतनत्व, ओर अमूर्तत्व ये आठ गुण होते हैं। पुद्गल मे अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, अगुरूलघुत्व, अचेतनत्व और मूर्तत्व ये आठ गुण पाये जाते हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्यों में अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, अगुरूलघुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व ये आठ गुण होते हैं। 1.4.2 विशेष गुण
1) ज्ञान-जिसके द्वारा जीव त्रिकाल विषयक समस्त गुण और उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जानता है वह ज्ञान गुण है। यह गुण आत्मा का है |