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अर्धमागधी आगम साहित्य एवं आचारांगसूत्र
___(DR. Prem Suman Jain) जैन परम्परा के अनुसार तीर्थकर महावीर की दिव्यदेशना जनभाषा अर्धमागधी प्राकृत में हुई, जो सुगम और सुबोध थी, जिसे प्रत्येक श्रोता सुगमता से समझ सकता था। दिव्यध्वनि सर्वांगीण होती है, उसमें सब जीवों की जिज्ञासाओं के समाधान का सामर्थ्य होता है। भगवान् के प्रमुख गणधर इन्द्रभूति गौतम ने उसे सांगोपांग ग्रहण किया और जीवों को उसके सार का रसास्वाद कराया। आज जो जैन साहित्य उपलब्ध है वह सब भगवान् महावीर की उपदेश परम्परा से सम्बद्ध है। भगवान महावीर के प्रधान गणधर गौतम इन्द्रभूति थे। उन्होंने भगवान महावीर के उपदेशों को अवधारण करके बारह अंग और चौदह पूर्व के रूप में निबद्ध किया। चार अनुयोग
जिनेन्द्र भगवान् के वचनों को विषय की दृष्टि से चार अनुयोगों में निबद्ध किया गया है-1.प्रथमानुयोग, 2.करणानुयोग, 3. द्रव्यानुयोग और 4.चरणानुयोग । समस्त द्वादशांग वाणी का सार इन चार अनुयोगों में ही निहित है। प्रथमानुयोग
___ प्रथम उपदेश को प्रथमानुयोग कहा जाता है अथवा कथानुयोग भी कहा जाता है। प्रथम शब्द का अर्थ प्रथम श्रेणी न समझकर प्रथम कक्षा समझना चाहिये। जिस प्रकार प्रथम कक्षा में पढ़नेवाला शिशु अबोध होता है, उसको कथा-कहानियों, चित्रों के द्वारा अक्षर-बोध कराया जाता है, उसी प्रकार जिसको आगम का ज्ञान नहीं होता उसको आगम और अध्यात्म का ज्ञान कथानुयोग के द्वारा कराया जाता है। इस प्रकार उपदेशाधिकार में कथा-कहानियों के माध्यम से आगम का, अध्यात्म का तथा जैन सिद्धान्त का परिज्ञान कराया जाय वह प्रथमानुयोग है इसका लक्षण स्वामी समन्तभद्र ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में बताया है-ऐसा समीचीन बोध (ज्ञान) देनेवाला प्रथमानुयोग है जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का आख्यान है। त्रेसठ शलाकापुरुषों के चरित्र का, पुण्य योग्य समस्त सामग्री का कथन है, बोधि अर्थात् रत्नत्रय और समाधि अर्थात् चार आराधनाओं का जिसमें विवेचन है वह प्रथमानुयोग है। "
___ प्रथमानुयोग में वर्णित अनेक कलाओं, विद्याओं, युद्धों, अस्त्र-शस्त्रों, युद्ध की विभीषिकाओं आदि का ज्ञान होता है। मानव का मानवोचित आहार-विहार, आमोद-प्रमोद