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________________ अपवाद दोनों मार्गों से दूर शास्त्र एवं परंपरा से निषिद्ध अमार्ग पर जाने वाले स्पष्ट ही प्रायश्चित्त के भागी हैं। क्या मैं आशा करूँ कि प्राचीन परंपरा के पक्षधर अपनी वर्तमान अशास्त्रीय परंपरा का मोह त्याग कर आषाढ़ पूर्णिमा के पर्युषण पर्व का सैद्धान्तिक पक्ष अपनाएँगे। पर्युषण पर लोच कब और क्यों? पर्युषण पर्व से सम्बन्धित लोच कब करना चाहिए और क्यों? उक्त प्रश्न पर हम प्रारंभ में ही विस्तार से चर्चा कर आए हैं। यहा संक्षेप में यह कहना है कि जब पर्युषण हो, तभी पर्युषण से सम्बन्धित केश लोच भी करना चाहिए। पर्युषण उत्सर्ग से आषाढ़ पूर्णिमा का शास्त्र एवं प्राचीन परंपरा से सिद्ध है, अतः केशलोच भी आषाढ़ पूर्णिमा के वर्षान्त प्रतिक्रमण से पहले ही करना सिद्ध है। कल्पसूत्र के मूल पाठ का स्पष्टीकरण करते हुए सुबोधिका में साफ लिखा है कि पर्युषण से अर्थात् आषाढ चातुर्मासी के अनन्तर भिक्षु को लंबे केश तो क्या, गोलोम प्रमाण छोटे केश भी नहीं रखने चाहिए। हेतु वही अप्काय की विराध ना का है, ज्वर आदि की उत्पत्ति का है, शिर खुजलाते समय यूका आदि की हिंसा एवं अपने नखक्षत आदि हो जाने की संभावना है। पर्युषणातः परमाषाढ़चतुर्मासकादनन्तरं गोलोमप्रमाणा अपि केशा न स्थापनीयाः। -कल्पसूत्र सुबोधिका 9 1 57 अपकाय विराधना आदि का टीका पाठ पहले लिखा जा चुका है। निशीथ सूत्र की विशेष चूर्णि में भी केशलोच की हेतुकता के लिए अप्काय विराधना आदि का ही उल्लेख है-आउक्काइयविराहणाभया संसज्जणभया य वासासु धुवलोओ कज्जति-3173। वर्षा के कारण लंबे केशों के भीग जाने पर अप्काय आदि की विराधना होती है, अत: वर्षावास में-चौमास में भिक्षओं को प्रतिदिन लोच करना चाहिए। यदि रोगादि कारणवश लोच न हो सके तो अपवाद में क्षुरमुंडन तथा कर्तरी मुंडन कराना चाहिए। क्षुरमुंडन कराए तो महीने-महीने के अनन्तर कराना चाहिए, और, यदि कर्तरी मुंडन कराए तो अर्धमास अर्थात् पंदरह-पंदरह दिन के अन्तर से कराते रहना चाहिए। इसके लिए कल्प-सूत्र का मूल पाठ दृष्टव्य है-मासिए खुरमुंडे, अद्धमासिए कत्तरीमुंडे-9157। आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने लोच न करने पर अपवाद में जो क्षुरमुंडन आदि का विधान किया है, पर्युषण और केशलोच 149 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212405
Book TitleParyushan Aur Kesh Loch
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size984 KB
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