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________________ पर्युषण अनादि नहीं है पर्यषण के सम्बन्ध में ओ यह बात प्रचारित की गई है कि यह अनादि है, अनन्त है, और सार्वत्रिक है, सत्य नहीं है। पर्युषण भी एक परम्परा है, अतः वह भी अन्य परम्पराओं की भाँति न अनादि है, न अनन्त है और न सार्वत्रिक ही है। जैन काल गणना के अनुसार भरत और ऐरवत क्षेत्रों में असर्पणी-उत्सर्पणी का बीस कोडाकोडीसागरपरिमित विशाल कालचक्र है। वर्तमान अवसर्पिणीकाल का प्रथम आरक' चार कोडा कोडी सागर का, दूसरा आरक तीन कोडाकोडी सागर का, तीसरा आरक दो कोडाकोडी सागर का है। उक्त तीनों आरकों में तीसरे आरक का बहुत अल्पकालिक अन्तिम भाग छोड़कर कहीं भी पर्युषण की व्यवस्था नहीं है। भरत तथा ऐरवत क्षेत्र में इसलिए नहीं है कि वहाँ तत्कालीन अकर्मभूमि युग में धर्म परम्परा ही नहीं थी। और महाविदेह क्षेत्र में इसलिए नहीं कि वहाँ सर्वदा एक जैसी रहनेवाली अवस्थित कालव्यवस्था है, जो भारतीय चतुर्थारक के समान है, अतः वहाँ पर्युषण परम्परा कभी प्रचलित ही नहीं हैं तृतीय आरक के अन्त में भगवान् ऋषभदेव के युग में कुछ समय के लिए पर्युषण की व्यवस्था हुई, परन्तु भगवान् ऋषभदेव के पश्चात् चतुर्थ आरक में भगवान् अजितनाथ से लेकर भगवान् पार्श्वनाथ तक 22 तीर्थंकरों के युग में लाखों-करोड़ों, अरबोखों आदि वर्षों तक पर्युषण की परम्परा ही न रहीं न भारत में रही, न ऐरवत में, और महाविदेह में तो कभी होती ही नहीं। अतः यह सुदीर्घकाल भी ऐसा काल है, जबकि समग्र भूमंडल पर कहीं भी पर्युषण अवस्थित नहीं था। जैन परम्परा में साध्वाचार सम्बन्धी दश कल्प बताए हैं- 1. आचेलक्य, 2. औद्देशिक, 3. शय्यातर पिण्ड, 4. राजपिण्ड, 5. कृतिकर्म, 6. अहिंसादि चार या पाँच महाव्रत, 7. पुरुष ज्येष्ठ धर्म, 8. प्रतिक्रमण, 9. मासकल्प ओर 10. पर्युषण कल्प। बृहत्कल्पसूत्र भाष्य में इस सम्बन्ध में एक गाथा है: “आचेलक्कुद्देसिय, शिजायर रायपिण्ड कितिकम्मे। वत जेट्ट पडिक्कमणे, मासं पज्जोसवण कप्पे" ॥6364॥ उक्त दश कल्पों में शय्यातर पिण्ड, अहिंसादि चतुर्याम व्रत, पुरुष ज्येष्ठ, कृतिकर्म- ये चार अवस्थित कल्प हैं, जो सभी 24 तीर्थंकरों के शासन में होते पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212404
Book TitleParyushan Ek Aetihasik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle, 0_not_categorized, & Paryushan
File Size1 MB
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