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________________ लिखा है- 'मैं आऊँ, तबतक पर्युषण न करना ।' जब आज की मान्यता के अनुसार भादवा सुदी पंचमी से पहले पर्युषण होता ही नहीं था, तब उन्हें प्रतिष्ठान श्रमण संघ को यह आदेश भेजने की क्या आवश्यकता थी? आर्यकालक ने एक दिन पहले पर्युषण किया तो इतिहास में उसका उल्लेख आया, किन्तु, औत्सर्गिक कही जानेवाली आषाढ़ पूर्णिमा से पचास दिन के परिवर्तन का कहीं कोई उल्लेख नहीं? उक्त प्रश्न के समाधान में कहना है कि आर्यकालक द्वारा एक दिन का परिवर्तन कोई खास बात नहीं है, खास बात है अपर्व में पर्युषण करना। कल्पसूत्र में यह तो साफ ही लिखा है कि 'स्थिति अनुकूल हो तो पहले भी पर्युषण करना कल्पता है' - ' अतरा वि य से कप्पड़ ।' जब पहले करने का उक्त विधान है, तो फिर परिवर्तन का प्रश्न कहाँ रहता है ? प्राचीन जैन परम्परानुसार आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर पाँच-पाँच दिन की वृद्धि से, क्षेत्रादि की अनुकूलता देखते हुए, कभी भी पर्युषण किया जा सकता है। भादवा सुदी पंचमी तो अन्तिम सीमा है, जबकि वर्षाएँ प्रायः समाप्त - सी हो जाती है, इसीलिए बृहत्कल्प भाष्य आदि के अनुसार उस दिन से तो वृक्ष के नीचे बैठकर भी पर्युषण-आगे का जघन्य 70 दिन का वर्षावास पूर्ण करने का विधान है। अतः स्पष्ट है कि आर्यकालक का परिवर्तन एक दिन पहले का नहीं, अपितु अपर्व में पर्व करने का परिवर्तन है, जो इतिहास के पन्नों पर चढ़ना ही चाहिए। पंचमी, दशमी, पंदरस पर्व हैं, इनके सिवा शेष तिथियाँ अपर्व हैं, जैसा कि निशीथ चूर्णि में 12 एवं अन्य अनेक टीका ग्रन्थों में लिखा है। जैन इतिहास में आषाढ़ पूर्णिमा से बदल कर भादवा सुदी पंचमी को पर्युषण कब, किसने, क्यों किया, इसका कोई उल्लेख क्यों नहीं है? बात यह है कि भादवा सुदी पंचमी को पर्युषण करना कोई नई बात नहीं थी । अपवाद रूप में उसका उल्लेख पहले से था ही, और यह अपवाद रूप में किया भी जाता था। अतः उसके लिए 'कब, किसने, क्यों किए' का प्रश्न ही गलत है। यदि यह अपर्व में पर्व करने जैसी कोई नई बात होती और किसी एक व्यक्ति विशेष से इसका सम्बन्ध होता, तो संभव है, उल्लेख किया जाता । अपवाद उत्सर्ग कैसे हो गया? प्रश्न है अपवाद उत्सर्ग कैसे हो गया? ऐसे हो गया कि उस प्राचीन युग में श्रावक तो होते थे, पर आज जैसे श्रावक संघों का व्यवस्थित विकास नहीं Jain Education International पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 129 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212404
Book TitleParyushan Ek Aetihasik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle, 0_not_categorized, & Paryushan
File Size1 MB
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