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________________ वह मेरे अर्थ के अनुकूल है, या सम्यग्दर्शन के? सम्यग् दर्शन में अर्थ किया है-“श्रमण भगवान् महावीर ने वर्षा के मासयुक्त बीस रात्रि व्यतीत होने पर और वर्षावास के सत्तर दिन शेष रहने पर पर्युषण किया।" यह कैसा विचित्र अर्थ है। मैं अर्थ की अन्य भूलों की ओर न जाकर प्रस्तुत की ही चर्चा कर रहा हूँ। 'वर्षावास के सित्तर दिन शेष रहने पर' इसमें वर्षावास के साथ षष्ठी विभक्ति कहाँ है, जिसका संबंध सत्तर दिन से जोड़ते हैं। सत्तर दिन का संबंध पहले के 'वासाणं' के साथ है, वर्षावास के साथ नहीं। मूल में वर्षावास के लिए तो द्वितीया विभक्ति है, जिसका सम्बन्ध पज्जोसवेइ के साथ है। वर्षावास, पज्जोसवेइ' -'परिवसति' का कर्म है। अतः 'वासावासं पज्जोसवेइ' का सही अर्थ होता है, 'वर्षावास के प्रति निवास करना'। इसीलिए टीकाकार ने उपसंहार वाक्य में 'सर्वथा वासं करोति' अर्थ किया है, जैसा कि मैंने हिन्दी में अर्थ किया है-'वर्षावास में स्थित रहना'। मालूम होता है, सम्यग्दर्शन तथा उसके सहयोगियों को क्या तो प्राकृत तथा संस्कृत का परिबोध नहीं है। यदि परिबोध है तो वह निश्छल भाव से सही सत्यस्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। व्यर्थ ही प्रचलित मान्यताओं के व्यामोह में भद्र जनता को असत्य के सघन अंधेरे में गुमराह कर रहे हैं। यह श्रद्धा के नाम पर सत्य के साथ नग्न खिलवाड़ है, जिसे भविष्य का इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा। समवायांग सूत्र के आधुनिक टीकाकार पूज्य श्री घासीलालजी हैं। पूज्य श्री समवायांग के उक्त पर्युषण संबंधी सूत्र का हिन्दी और गुजराती अर्थ करते हुए तो गड़बड़ा गए हैं, मूलानुसारी ठीक अर्थ नहीं किया है। मालूम होता है, प्रचलित मान्यता के कारण जनश्रद्धा के नाम पर कुछ विभ्रम में पड़ गए हों। यह विभ्रम ही है कि संस्कृत में कुछ अर्थ है तो हिन्दी में कुछ और, तथा गुजराती में कुछ और ही। हिन्दी में अर्थ है-श्रमण भगवान् महावीर ने वर्षाकाल के एक महीना बीस दिन बीतने पर पर्युषण किया और अवशिष्ट 70 सत्तर दिन रहने पर वर्षाकाल-चातुर्मास पूरा किया। गुजराती में अर्थ है-श्रमण भगवान् महावीर चौमासाना 1 एक मास अने बीस दिवस व्यतीत थया पछी पर्युषण कर्या अने बाकीना सित्तेर दिवस पूरा थतां चातुर्मास पूर्ण कर्यु। __124 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212404
Book TitleParyushan Ek Aetihasik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle, 0_not_categorized, & Paryushan
File Size1 MB
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