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भगवान् के चरणों में पहुँचा, इसका श्रेय किसे प्राप्त है ? किसने भगवान् के चरणों तक पहुँचाया था उसे ? सम्राट् श्रेणिक सहज ही नहीं पहुँच गया था, क्योंकि वह दूसरे मत का अनुयायी था । उसे भगवान् के चरणों में पहुँचाने वाली हमारी एक बहिन थी, जिसका नाम था चलना । उसे इस पवित्र कार्य को करने में कड़े संघर्षों का सामना भी करना पड़ा, बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ भुगतनी पड़ीं। अपने पति को भगवान् के मंगल-मार्ग पर लाने के लिए उसने न जाने कितने खतरे अपने सर पर लिए, कितनी बड़ी जोखिमें उठाई ! हम रानी चेलना के महान् जीवन को कभी भुला नहीं सकते, जिसने अपनी सम्पूर्ण चेतना एवं शक्ति के साथ अपने सम्राट् पति को धर्म के मार्ग पर लाने का निरन्तर प्रयास किया और अन्त में वह अपने प्रयास में सफलता प्राप्त कर के ही रही ।
त्याग की उज्ज्वल मूर्ति : नारी :
उस समय के इतिहास को देखने से यह स्पष्टतया ज्ञात हो जाता है कि बहनों के त्यागमय महान कार्यों से ही समाज, और धर्म का जीवन-पथ आलोकित था । उनको संसार का बड़े-से-बड़ा वैभव मिला था, किन्तु के उस वैभव की दलदल में फँसी नहीं रहीं, और उन्होंने अकेले ही धर्म का मार्ग अंगीकार नहीं किया, प्रत्युत घर में जो सास, ससुर, देवर, ननद, पति, पुत्र तथा अपने पिता, माता, भ्राता आदि कुटुम्बीजन थे, उन सबको साथ लेकर धर्म का मार्ग तय किया है। इस रूप में हमारी बहिनों का इतिहास बड़ा ही उज्ज्वल और गौरवमय रहा है ।
चिन्तन के क्षेत्र में नारी :
प्राचीन ग्रन्थों को देखने के क्रम में मुझे एक बड़ा ही सुन्दर ग्रन्थ देखने को मिला । यह पन्द्रहवीं शती का एक साध्वी का लिखा हुआ ग्रन्थ है । उस ग्रन्थ के प्रक्षर बड़े ही सुन्दर, मोती- सरीखे हैं, साथ ही अत्यन्त शुद्ध भी । यह नारी की उच्च चिन्तना एवं मौलिक सर्जना का एक उज्ज्वल उदाहरण है ।
पाँच सौ वर्षों के बाद, श्राज, सम्भव है, उसके परिवार में कोई भी प्रादमी न बचा हो, किन्तु उसने जिस सुन्दर वस्तु की सर्जना की है, वह आज भी एकबार मन को गुदगुदा देती है । उसे देख कर मैंने विचार किया --- अगर वह साध्वी उस शास्त्र को ठीक तरह न समझती होती, तो इतना शुद्ध और सुन्दर कैसे लिख सकती थी ? उसकी लिखावट की शुद्धता से पता चलता है कि उसमें ज्ञान की गम्भीरता और चिन्तन की चारता सहज समाहित थी ।
इसके अतिरिक्त मैंने और भी शास्त्र भण्डार देखे हैं, जिनमें प्रायः देखा है, अनेक शास्त्रों का लेखन आदि या तो किसी की माता या बहन या बेटी या धर्म-पत्नी आदि के द्वारा कराया गया है । इस प्रकार बहुत से शास्त्र एवं ग्रन्थ हमारी बहनों के धार्मिक एवं साहित्यिक चेतना के ही प्रतिफल हैं । मेरा विचार है, कि धर्म-साधना के अतिरिक्त साहित्यिक दृष्टिकोण की अपेक्षा से भी बहनों का जीवन बड़ा शानदार रहा है।
वर्तमान युग में नारियों का दायित्व :
आज समाज में, जो गड़बड़ियां फैली हुई हैं, उनका उत्तरदायित्व पुनः बहनों पर आया है । क्योंकि मानव जीवन का महत्त्वपूर्ण भाग बहनों की ही गोद में तैयार होता है । उन्हें सन्तान के रूप में एक तरह से कच्ची मिट्टी का लोंदा मिला है। उसे क्या बनाना है और क्या नहीं बनाना है? यह निर्णय करना उनके ही अधिकार क्षेत्र में है । जब माताएँ योग्य होती हैं, तो वे अपनी सन्तान में त्याग, तप एवं करुणा का रस पैदा कर देती हूँ और धर्म एवं समाज की सेवा के लिए उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण प्रेरणा जगा देती हैं । ऐसी सन्नारियों के बीच मदालसा का नाम चमकता हुआ हमारी आँखों के सामने बरबस आ
नारी : धर्म एवं संस्कृति की सजग प्रहरी
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