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________________ भ्रामक धारणाएँ: बहुत से माता-पिता प्रगतिशील और विकासेच्छु छात्रों से लड़-झगड़ कर उनकी प्रगति को रोक देते हैं। लड़कियों के प्रति तो उनका रुख और भी कठोर होता है। प्रायः लड़कियों का जीवन तो तुच्छ और नगण्य ही समझा जाता है। इस प्रकार, समाज में जब होनहार युवाशक्ति के निर्माण का समय आता है, तो उनके विकास पर ताला लगा दिया जाता है। उनको अपने माता-पिता से जीवन बनाने की कोई प्रेरणा नहीं मिल पाती। माता-पिता उलट उनके मार्ग में कांटे बिछा देते हैं। उन्हें रोजमर्रा के परम्परागत व्यापार की चक्की में जोत दिया जाता है। वे उन होनहार युवकों को पैसा बनाने की मशीन बना देते हैं, जीवन की ओर कतई ध्यान नहीं दिया जाता। देश के हजारों नवयुवक इस तरह अपनी जिन्दगी की अमूल्य घड़ियों को खो कर केवल पैसे कमाने की कला में ही लग जाते हैं । इसलिए समाज और राष्ट्र के लिए वे तनिक भी उपयोगी नहीं बन पाते। तोड़ना नहीं, जोड़ना सीखें: लेकिन छात्रों को किसी से अपने सम्बन्ध तोड़ने नहीं है, सबके साथ सम्यक् व्यवहार करना हैं। हमें जोड़ना सीखना है, तोड़ना नहीं। तोड़ना आसान है, पर जोड़ना कठिन है। जो मनुष्य किसी-न-किसी रूप में हर एक से जोड़ने की कला सीख जाता है, वह जीवनसंग्राम में कभी भी हार नहीं खाता। वह विजयी होकर ही लौटता है। श्री अब्दुर्रहीम खानखाना, अपने युग के एक महान् विचारक, प्रबुद्ध सेनापति हुए हैं। उन्होंने कहा था "मेरा काम तोड़ना नहीं, जोड़ना है। मैं तो सोने का घड़ा हूँ, टूटने पर सौ बार जुड़ जाऊँगा । मैं जीवन में चोट लगने पर टूटा हूँ, फिर भी जुड़ गया हूँ। मैं मिट्टी का वह घड़ा नहीं हैं, जो एक बार टने पर फिर कभी जुड़ता ही नहीं। मैंने अपनी जिन्दगी में मान जुड़ना ही सीखा है।" उनकी इस बात का उनकी अपनी सेना और पुरजन-परिजनों पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा। तो छात्रों को सोने के घड़े की तरह, माता-पिता द्वारा चोट पहुँचाए जाने पर भी टूट कर जुड़ जाना चाहिए, बर्बाद न हो जाना चाहिए । असफलता ही, सफलता की जननी है : आज के छात्र की जिन्दगी कच्ची जिन्दगी है। वह एक बार थोड़ा-सा असफल हो जाने पर निराश हो जाता है। बस एकबार गिरते ही, मिट्टी के ढेले की तरह बिखर जाता है। परन्तु जीवन में सर्वत्र सर्वदा सफलता ही सफलता मिले, असफलता का मुंह कभी भी देखना न पड़े, यह कदापि सम्भव नहीं। सच्चाई तो यह है कि असफलता से टकराव के पश्चात् जब सफलता प्राप्त होती है, तो वह कहीं और अधिक आनन्ददायिनी होती है। अतएव सफलता की तरह यदि असफलता का भी स्वागत नहीं कर सकते, तो कम-से-कम उससे हताश तो नहीं ही होना चाहिए। असफल होने पर मन में धर्य की मजबूत गाँठ बाँध लेनी चाहिए, घबराना कभी भी नहीं चाहिए। असफल होने पर घबराना, पतन का चिन्ह है, और धैर्य रखना, उत्साह रखना, उत्थान का चिन्ह है। उत्साह सिद्धि का मन्त्र है। छात्रों को असफल होने पर भी नीचे जोर से पटकी हुई गेंद की तरह पुनः उभरना सीखना चाहिए। हतोत्साहित होकर अपना काम छोड़कर बैठ नहीं जाना चाहिए। कहा भी है-'असफलता ही सफलता की जननी और आनन्द का प्रक्षय भण्डार है।' परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर आत्महत्या करने की खबरें, आए दिन समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं। विद्यार्थियों के लिए यह बड़े कलंक की बात है। चढ़ती हुई जवानी में तो मनुष्य को उत्साह और पौरुष का मूर्तिमान रूप होना चाहिए, उसमें असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने का हौसला होना चाहिए, समुद्र को लाँघ जाने और आकाश के विद्यार्थी जीवन : एक नव-अंकुर ३७७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212390
Book TitleVidyarthi Jivan Ek Navankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages15
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
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