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________________ इसी का नाम आचार है, चरित्र (Character) है और नैतिक शक्ति (Moral Power) है। इसका विकास प्रात्मा का विकास है, जीवन का विकास है। ब्रह्मचर्य की महिमा का गान, देखिए, किस उदात्त एवं गंभीर स्वर से किया है। "देव-दाणव-गंधव्या, जक्ख-रक्खस-किन्नरा। बंभयारि नमसंति, दुक्करं जे करेन्ति तं॥" --उत्तराध्ययन सूत्र, 16, 16. ----जो महान् आत्मा दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, समस्त दैवी शक्तियां उनके चरणों में सिर झुका देती हैं। देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर ब्रह्मचारी के ब्रह्मचर्य संयम का मल है। परब्रह्म-मोक्ष का एकमात्र कारण है। ब्रह्मचर्य पालन करने वाला, पूज्यों का भी पूज्य है। सुर, असुर एवं नर--सभी का वह पूज्य होता है, जो विशुद्ध मन से ब्रह्मचर्य की साधना करता है। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मनुष्य स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न रहता है। ब्रह्मचर्य की साधना से मनुष्य का जीवन तेजस्वी और प्रोजस्वी बन जाता है। पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.212380
Book TitleBramhacharya Sadhna Ka Sarvoccha Shikhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
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