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________________ बेचैनी फैली हुई है, उसके मू सत्य के विधातक तत्व: आज लोगों के जीवन में जो संघर्ष और गड़बड़ दिखाई देती है, चारों ओर जो बनी फैली हुई है, उसके मल कारण की अोर दष्टिपात किया जाए, तो यह पता लगेगा कि मन के सत्य का अभाव ही इस विषम परिस्थिति का प्रधान कारण है। जब तक मन के सत्य की भली-भाँति उपासना नहीं की जाती, तब तक घणा-द्वेष आदि बुराइयाँ, जो आज सर्वत्र अपना अड्डा जमाए बैठी हैं, समाप्त नहीं हो सकतीं।। असत्य भाषण का एक कारण क्रोध है। जब क्रोध उभरता है, तो मनुष्य अपने आपे में नहीं रहता है। क्रोध की आग प्रज्वलित होने पर मनुष्य की शान्ति नष्ट हो जाती है, विवेक भस्म हो जाता है और वह असत्य भाषण करने लग जाता है । आपा भुला देने वाले उस क्रोध की स्थिति में बोला गया असत्य तो असत्य है ही, किन्तु सत्य भी असत्य हो जाता है। अत: सत्य की उपासना के लिए क्षमा की शक्ति अतीव आवश्यक है। इसी प्रकार जब मन में अभिमान भरा होता है और अहंकार की वाणी चेतना को ठोकरें मार रही होती है, तो ऐसी स्थिति में असत्य, तो असत्य रहता ही है, यदि वाणी से सत्य भी बोल दिया जाए, तो वह भी जैन-धर्म की भाषा में, असत्य ही हो जाता है। मन में माया है, छल-कपट है, धोखा है, उस स्थिति में अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मनुष्य कोई अट-पटा-सा शाब्दिक सत्य तैयार कर लेता है, जिसका प्रसंग से भिन्न दूसरा अभिप्राय भी निकाला जा सकता है, तो वह सत्य भी असत्य की श्रेणी में है। ___ मनुष्य, जब लोभ-लालच में फंस जाता है, वासना के विष से मूच्छित हो जाता है, अपने जीवन के महत्त्व को भूल जाता है, जीवन की पवित्रता का उसे स्मरण नहीं रहता है, तब उसे यह विवेक भी नहीं रहता कि वह साधु है या गृहस्थ है? वह नहीं सोच पाता, कि अगर मैं गृहस्थ हूँ, तो एक सदगृहस्थ की भूमिका भी संसार को लूटने की नहीं है, संसार में डाका डालने के लिए ही मेरा जन्म नहीं हुआ है। मानव, संसार में लेने-हीलेने के लिए नहीं जन्मा है, किन्तु उसका जन्म संसार को कुछ देने के लिए भी हया है, संसार की सेवा के लिए भी हुआ है। अतः जो कुछ मैंने पाया है, उसमें से जितना मेरा अधिकार है, उतना ही समाज एवं देश का भी अधिकार है। मैं अपने प्राप्त धन को अच्छी तरह संभाल कर रख रहा हूँ और जब देश को, समाज को जरूरत होगी, तो कर्तव्य समझ कर प्रसन्नता से समर्पित कर दूंगा। ____ मनुष्य की यह उदार मनोवृत्ति उसके मन को विराट् एवं विशाल बना देती है। जिसके मन में उदार भावना रहती है, उसके मन में ईश्वरीय प्रकाश चमकता रहता है और ऐसा सत्य-निष्ठ व्यक्ति, जिस परिवार में रहता है, वह परिवार सुखी एवं समृद्ध रहता है। जिस समाज में ऐसे उदारमना मनुष्य विद्यमान रहते हैं, वह समाज जीता-जागता समाज है । जिस देश में ऐसे मनुष्य जन्म लेते हैं, उस देश की सुख-समृद्धि सदा फूलतीफलती रहती है। सत्य का प्राचरण : ___जब तक मनुष्य के मन में उदारता एवं उदात्त भावना बनी रहती है, उसे लोभ नहीं घेरता है। यदि कभी मन में लोभ उत्पन्न होने लगता है, तो उससे टकराता है, जम कर संघर्ष करता है और लोभ के जहर को अन्दर नहीं आने देता है। जब तक मनुष्य सच्चाई के साथ उदारता की पूजा करता है, तभी तक उसकी उदारता सत्य है। निर्लोभता सत्य का महत्त्वपूर्ण रूप है। सेवा करना भी सत्य का प्राचरण करना है। मन में निरभिमानता और सेवा की भावना है अर्थात् जब कोई सेवा का प्रादर्श लिए नम्र सेवक के रूप में पहुँचता है, तो उसकी विनम्रता भी सत्य है । जो जन-सेवा के लिए विनम्र बन कर चल रहा है, वह सत्य का ही 'आचरण कर रहा है। २७८ पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212378
Book TitleBhagwatta Mahavir Ke Drushti Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size896 KB
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