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________________ पूर्णतः सही नहीं है। उनकी मुक्ति तो उसके बहुत पहले वैशाख शुक्ला दशमी को ही हो चुकी थी। अनुयोगद्वार सूत्र के अनुसार सिद्ध का एक अर्थ केवलज्ञानी भी है। भगवान् महावीर सिद्ध थे, जीवन-मुक्त थे, शरीर में रह कर भी शरीर के घेरे से परे थे, इसीलिए वे इन्द्रियों के रहते हुए भी तो इन्द्रियों से परे थे। चूंकि वे मनो जन्य राग-द्वेष से मुक्त थे। एक प्राचार्य ने कहा है-कषाय-मुक्तिः किल मुक्तिरेव' कषाय से मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है। इसी दृष्टि से अनुयोगद्वार सूत्र में कहा है-सिद्ध भगवान् ने ऐसा कहा है। देह से मुक्त होने पर ही यदि सिद्ध होता है, पहले नहीं, तो प्रश्न है--वे कहते कैसे हैं ? कहना तो शरीरधारी का ही होता है। अतः स्पष्ट है कि मोह और क्षोभ से रहित वीतराग आत्मा शरीर के रहते हुए भी सिद्ध हो जाती है। मुख्य प्रश्न देहत्याग का नहीं, कषायत्याग का है। वास्तविक मुक्ति भी देहमुक्ति नहीं है, कषायमुक्ति है। जो आत्मा कषाय से मुक्त है, राग-द्वेष से रहित है, वही सच्चे अर्थ में मुक्त है। इसलिए जब हम मुक्ति की खोज में निकलते हैं, तो हमें अपनी खोज करनी पड़ती है। मुक्ति कहीं बाहर नहीं है, अपने में ही है। और, उस अपनी खोज का, अर्थात् आत्मा की खोज का जो मार्ग है, वही धर्म है। हमें उसी धर्म की आराधना करनी है, साधना करनी है, जो आत्मा का ज्ञान कराए, स्वरूप की उपलब्धि कराए। स्पष्ट है कि धर्म का तत्व प्रात्मानुसंधान है, आत्मावलोकन है। प्रात्मावलोकन अर्थात् जिसने अपने अन्तर् का अवलोकन कर लिया, अपने अन्तर्दैव का दर्शन कर लिया, जिसने अपनी प्रात्मा की आवाज-सच्ची, विश्व कल्याणी आवाज का श्रवण कर लिया, उसने धर्म का सार पा लिया। आत्मस्वरूप को समझ लेने पर व्यक्ति के अन्दर विश्वभाव की उदात्त भावना जागत हो जाती है, उसकी आवाज विश्वजनीन आवाज होती है। उसका चिन्तन विश्वार्थ चिन्तन होता है। उसका कार्य-विश्वहितंकर कार्य होता है। अतः निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि धर्म का वास्तविक रूप अपने-आप को पहचानना है, अपने अन्तर् का सम्यक्-अवलोकन करना है, जिसके अन्दर प्रेम, मैत्री, करुणा एवं दया का अक्षय निझर झरा करता है। वीतरागता का पाथेय : धर्म Jain Education Intemational 125 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.212361
Book TitleVitragta Ka Pathey Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size626 KB
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