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________________ हो सकता है ? उष्णता का कारण प्राग है और जब तक वह नीचे जल रही है, तब तक दूध के उबाल और उफान को शान्त करना है, तो उसका उपाय यह नहीं है कि दो-चार पानी के छोटे दे दिए जाए, और बस ! अपितु उसका वास्तविक उपाय यही है, कि नीचे जलने वाली आग को या तो बुझा दिया जाए या उसे नीचे से निकाल दिया जाए। इसी प्रकार अध्यात्मसाधना के क्षेत्र में अनादि-काल के दुःख को दूर करने का वास्तविक उपाय यही है कि उसे केवल ऊररी सतह से दूर करने की अपेक्षा उसके मूलकारण का ही उच्छेद कर दिया जाए। मानव-जीवन में दुःख एवं क्लेश की सता एवं स्थिति इस तथ्य एवं सत्य को प्रमाणित करती है कि दुःख का मूल कारण अन्यत्र नहीं, हमारे अन्दर ही है। जब तक उसे दूर नहीं किया जाएगा, तब तक दुःख की ज्वाला कभी शान्त नहीं होगी। अतः अध्यात्मवादी-दर्शन कहता है कि दुःख है। क्योंकि दुःख का कारण है और वह कारण बाहर में नहीं, स्वयं तुम्हारे अन्दर में है। दुःख के कारण का उच्छेद कर देने पर दुःख का उबाल-उफान स्वतःही शान्त हो जाएगा। तब दुःख का अस्तित्व समाप्त होकर सहज-निर्मल ग्रानन्द का अमृत-सागर हिलोरें लेने लगेगा। शरीर में रोग होता है, तभी उसका इलाज किया जा सकता है। रोग होगा, तो रोग का इलाज भी अवश्य होगा। यदि कोई रोगी वैद्य के पास आए और वैद्य उसे यह कह दे कि आपके शरीर में कोई रोग नहीं है, तो उसका यह कयन गलत होगा। शरीर में यदि रोग की सता और स्थिति है, तो उसे स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है। शरीर में रोग की सत्ता स्वीकार करने पर भी यदि वैद्य यह कहता है कि रोग तो है, किन्तु उसका इलाज नहीं हो सातातो यह भी गलत है। जब रोग है, तब उसका इलाज क्यों नहीं हो सकता? संसार का कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इस तर्क को स्वीकार नहीं कर सकता कि रोग होने पर उसका प्रतिकार न हो सके। रोग को दुस्साध्या भले ही कहा जा सके, किन्तु असाध्य नहीं कहा जा सकता। यदि चिकित्सा के द्वारा रोग का प्रतिकार न किया जा सके, तो संसार में चिकित्साशास्त्र का कोई अर्थ ही न रहेगा। विचारक लोग उसे व्यर्थ समझ कर छोड़ बैठेंगे। अस्तु, चिकि सा-शास्त्र योग एवं प्रयोग के द्वारा रोग का स्वरूप निश्चित करता है, रोगोत्पत्ति का कारण मालुम करता है, रोग को दूर करने का उपाय एवं साधन बतलाता है, वस्तुतः यही उसकी उपयोगिता है। इसी प्रकार अध्यात्म-शास्त्र में यदि कहा जाता कि दुःख तो है, किन्तु उसे दूर नहीं किया जा सकता, तो यह गलत होगा। किसी भी बुद्धिमान के गले यह नकार उतर नहीं सकता। जब दुःख है, तो उसका प्रतिकार क्यों नहीं किया जा सकता? अध्यात्मदर्शन कहता है, कि दुःख के प्रतिकार का सबसे सीधा और सरल मार्ग यही है कि दुःख के कारग को दूर किया जाए। भारत का अध्यात्म-साधक दुःख की सत्ता और स्थिति को स्वीकार करके भी उसे दूर करने का प्रयत्न करता है, साधना करता है और उसमें सफलता भी प्राप्त करता है। भारत का अध्यात्मवादी-दर्शन निराशावादी-दर्शन नहीं है, वह शतप्रतिगत प्राशावादी है। जीवन को मधुर प्रेरणा देनेवाला दर्शन है। अध्यात्मवादी-दर्शन मानव-मात्र के सामने यह उद्घोषणा करता है कि अपने को समझो और अपने से भिन्न जो पर है, उसे भी समझने का प्रयत्न करो। स्व और पर के विवेक से ही तुम्हारी मुक्ति का भव्य द्वार खुलेगा। शरीर में रोग है, इसे भी स्वीकार करो। और, उसे उचित साधन के द्वारा दूर किया जा सकता है, इस पर भी प्रास्या रखो। दुःख है, इसे स्वीकार करो, और वह दुःख दूर किया जा सकता है, इस पर भी विश्वास रखो। साधन के द्वारा साध्य को प्राप्त किया जा सहता है, इससे बढ़कर मानव-जीवन का और प्राशावाद क्या होगा? भारत का अध्यात्मवादीदर्शन कहता है कि साधक ! तू अरने वर्तमान जीवन में ही मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। आवश्यकता है, केवल आने जीवन को बहिर्मुख दिशा को अन्तर्मुखता में बदलने की। बंध-पमोक्खो तुम अज्मस्थेव Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212353
Book TitleBandh Pamokkho Tuzjna Ajjhatthev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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