________________ स्थिति ही वह परमात्म-सत्ता है, जो मानव-जीवन की सर्वोत्तम शुद्ध चेतना में प्रतिष्ठित है। इस प्रकार भगवान् महावीर ने संसार की अन्धेरी गलियों में भटकते मनुष्य को जीवनशुद्धि का दिव्य सन्देश देकर अनन्त ज्योतिर्मय ईश्वर के पद पर प्रतिष्ठित किया। महावीर ईश्वर को, जैसा कि कुछ लोग मान रहे थे, शक्ति और शासन का प्रतीक नहीं, अपितु शुद्धि का प्रतीक मानते थे। उनका कहना था कि मानव-आत्मा जब पूर्ण शुद्धि की भूमिका पर जा पहुँचती है, तब वह सिद्ध हो जाती है, आत्मा से परमात्मा हो जाती है। 52 पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org