SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विकारों को शान्त करते हैं। फलतः शत्रु को भी मित्र बना लेते हैं। तीर्थकर भगवान्, उक्त विवेचन के प्रकाश में पुरुष-सिंह हैं, पुरुषों में सिंह की वृत्ति रखते हैं। पुरुषवर पुण्डरीक : तीर्थंकर भगवान् पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल के समान होते हैं। भगवान को पुण्डरीक कमल की उपमा बड़ी ही सुन्दर-सार्थक दी गई है। पुण्डरीकः श्वेत-कमल का नाम है। दूसरे कमलों की अपेक्षा श्वेत-कमल सौन्दर्य एवं सुगन्ध में अतीव उत्कृष्ट होता है। सम्पूर्ण सरोवर एक श्वेत कमल के द्वारा जितना सुगन्धित हो सकता है, उतना अन्य हजारों कमलों से नहीं हो सकता। दूर-दूर से भ्रमर-वृन्द उसकी सुगन्ध से आकर्षित होकर चले आते हैं, फलतः कमल के आस-पास भंवरों का एक विराट् मेला-सा लगा रहता है। और इधर कमल बिना किसी स्वार्थभाव के दिन-रात अपनी सुगन्ध विश्व को अर्पण करता रहता है। न उसे किसी प्रकार के बदले की भूख है, और न ही कोई अन्य वासना । चुपचाप मूक सेवा करना ही कमल के उच्च जीवन का आदर्श है। तीर्थंकरदेव भी मानव-सरोवर में सर्वश्रेष्ठ कमल माने गए हैं। उनके प्राध्यात्मिक जीवन की सुगन्ध अनन्त होती है। अपने समय में वे अहिंसा और सत्य आदि सद्गुणों की सुगन्ध सर्वत्र फैला देते हैं। पुण्डरीक की सुगन्ध का अस्तित्व तो वर्तमान कालावच्छेदेन ही होता है। किन्तु तीर्थकरदेवों के जीवन की सुगन्ध तो हजारों-लाखों वर्षों बाद आज भी भक्त-जनता के हृदयों को महका रही है। आज ही नहीं. भविष्य में भी हजारों वर्षों तक इसी प्रकार महकाती रहेगी। महापुरुषों के जीवन की असीम अनन्त सुगन्ध को न दिशा ही अवरुद्ध कर सकती है, और न काल ही। जिस प्रकार पुण्डरीक श्वेत होता है, उसी प्रकार भगवान् का जीवन भी राग, द्वेष आदि से मुक्त वीतराग-भाव के कारण पूर्णतया निर्मल श्वेत होता है। उसमें क्रोधादि कषाय-भाव का जरा भी रंग नहीं होता। पुण्डरीक के समान भगवान् भी निस्वार्थ भाव से जनता का कल्याण करते हैं, उन्हें किसी से किसी भी प्रकार की लौकिक अपेक्षा, सांसारिक वासना नहीं होती। कमल अज्ञान अबस्था में ऐसा करता है, जबकि भगवान् ज्ञान के विमल प्रकाश में निष्काम-भाव से जनकल्याण का कार्य करते हैं। यह कमल की अपेक्षा भगवान् की उच्च विशेषता है। कमल के पास पाम धमर ही पाते हैं, जबकि तीर्थंकरदेव के प्राध्यात्मिक जावन कार से प्रभावित होकर विश्व के सभी भव्य प्राणी, बिना किसी जाति, कुल या देश आदि भेद के, उनके पावन चरणों में उपस्थित हो जाते हैं। __कमल की उपमा का एक भाव और भी है। वह यह है कि भगवान् संसार में रहते हुए भी संसार की वासनाओं से पूर्णतया निर्लिप्त रहते हैं, जिस प्रकार पानी से लबालब भरे हुए सरोवर में रहकर भी कमल पानी से लिप्त नहीं होता। कमल-पत्र पर पानी की एक भी बूंद अपनी रेखा नहीं डाल सकती। कमल की यह उपमा जैन, बौद्ध, वैदिक आदि प्रायः सभी विशिष्ट सम्प्रदायों में सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक उपमा है। गन्ध-हस्ती: भगवान् पुरुषों में श्रेष्ठ गन्ध-हस्ती के समान हैं। सिंह की उपमा वीरता की सूचक है, गन्ध की नहीं। और पुण्डरीक की उपमा गन्ध की सूचक है, वीरता की नहीं । परन्तु, गन्ध-हस्ती की उपमा सुगन्ध और वीरता दोनों की सूचना देती है। ___गन्ध-हस्ती एक महान् विलक्षण हस्ती होता है। उसके गण्डस्थल से सदैव सुगन्धित मद जल बहता रहता है और उस पर भ्रमर-समूह गंजते रहते हैं। गन्ध-हस्ती की गन्ध इतनी तीव्र होती है कि युद्धभूमि में जाते ही उसकी सुगन्धमात्र से दूसरे हजारों हाथी नस्त होकर भागने लगते है, उसके समक्ष कुछ देर के लिए भी नहीं ठहर पाते। यह गन्धहस्ती तीर्थंकर : मुक्ति-पथ का प्रस्तोता Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212349
Book TitleTirthankar Mukti Path Ka Prastota
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy