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________________ प्राकृत तथा अन्य भारतीय भाषाएँ २९५ प्राकृत लाग वियाल विहाण सुहाली बुन्देली लाग व्यारी भ्याने सुहारी अर्थ चुंगी विकाल भोजन (रात्रि भोजन) प्रभात पुड़ी मराठी मराठी दक्षिण भारत में महाराष्ट्र में प्राचीन समय से ही संस्कृत और प्राकृत का प्रभाव रहा है। महाराष्ट्री प्राकृत चकि लोकभाषा थी अतः उसने आगे आने वाली अपभ्रंश और आधुनिक मराठी को अधिक प्रभावित किया है। प्राकृत और महाराष्ट्री भाषा का तुलनात्मक अध्ययन कई विद्वानों ने प्रस्तुत किया है। यद्यपि महाराष्ट्री प्राकृत ही मराठीभाषा नहीं है। उसमें कई भाषाओं की प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण है। फिर भी प्राकृत के तत्त्व मराठी में अधिक हैं। जो शब्द ५-६ठी शताब्दी के प्राकृत ग्रन्थों में प्रयुक्त होते थे वे भी आज की मराठी में सम्मिलित हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि प्राकृत और मराठी का सम्बन्ध बहुत पुराना है-भाषा और क्षेत्र दोनों की दृष्टि से । मराठी के वे कुछ शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं जो प्राकृत साहित्य में भी प्रयुक्त हुए हैं तथा जिनके दोनों में समान अर्थ हैं। प्राकृत अर्थ अणिय अणिया अग्रभाग अंगोहलि आंघोल गले तक का स्नान उन्दर उन्दीर चूहा कच्छोट्ठ कासोटा कटिवस्त्र करवती करवत करवा कोल्लुग कोल्हा गार गार गुडिया गुठी तोटण घोड़ा चिक्खल्ल चिखल छेलि सेलि छेप्प शेपूटी जल्ल जाल शरीर का मैल ढिंकुण ढेकूण खटमल तुंड तोंड मुह तक्क ताक मठा सूती चादर गीदड़ पत्थर कीचड़ बकरी तूलि परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212342
Book TitlePrakrit Tatha Anya Bharatiya Bhashaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuman Jain
PublisherZ_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size982 KB
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