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साहित्यकार की प्रतिबद्धता... 21 "यह चिन्ता किये बिना कि उसके लेखन से किस दल को प्रश्रय मिलता है, साहित्यकार श्रमजीवी वर्ग के जीवन-मूल्यों से प्रेरित और अनुप्राणित सर्जना में दतचित्त रह सकता है।"
अविवेकशीलता पर आधारित अनेक दार्शनिक सिद्धांतों को जन्म दिया है जिनकी मुख्य स्थापना है कि जीवन अर्थहीन है, सामाजिक घटनाक्रम अत्यन्त आकस्मिक और तर्कहीन है, और दुनिया का विनाश निकट है, इसलिए सामाजिक रूपान्तर का कोई अर्थ नहीं है । वे पार्टी और विचारधारा के प्रति संलग्नता को साहित्यकार की स्वतंत्रता के लिए घातक सिद्ध करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहे है।
किन्तु एक ऐसी व्यवस्था में जिसमें मुट्ठी भर शोषक और उनके बुद्धिजीवी बानाधारी अनुचर समाज के समस्त संचार साधनों, रेडियो-टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाओं, प्रकाशनगृहों आदि पर अधिकार जमाये बैठे हैं, जिस सीमा तक साहित्यकार अपने कृतित्व से शोषक व्यवस्था का पर्दाफाश करने, शोषित वर्गों में वर्ग-चेतना तथा संगठित होने की भावना पैदा करने, मानव-सम्बन्धों की जटिलता को समझने और सूक्ष्म से सूक्ष्म संवेदन जागृत करने का काम करता है, उस सीमा तक वह अपनी स्वतन्त्रता का क्षितिज विस्तृत बनाता है । वर्ग-विभक्त समाज में 'स्वतंत्रता' का यही अर्थ है । पूंजीवादी वर्ग 'स्वतंत्रता' की बात करता है तो उसका अर्थ है कि साहित्यकार श्रमजीवी वर्ग के आन्दोलन के विरुद्ध काम करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है, इतना कि इस काम के दौरान अगर वह स्वयं अपने स्वामियों की किंचित आलोचना भी कर दे तो क्षम्य माना जायगा।
यहां यह नोट करना आवश्यक है कि वर्ग विभक्त समाज में साहित्यकार के लिए यह आसान नहीं होता कि वह (पूंजीवादी संस्थान या सरकारी नौकरियों में होने के कारण) खुले आम श्रमजीवी वर्ग की पार्टी का सदस्य बन सके। किन्तु जब तक इस विवशता को छिपा कर वह अपनी स्थिति को 'साहित्यकार की वर्गेतर और पार्टीहीन स्थिति की सहजता और अनिवार्यता' का सिद्धान्त बनाकर पेश करने और श्रमजीवी वर्ग की पार्टी से जुड़े साहित्यकारों पर कीचड़ उछालने का काम नहीं करता, दूसरे शब्दों में, श्रमजीवी वर्ग के संगठनों पर हमला नहीं करता, तब तक श्रमजीवी वर्ग उसे अपना शत्रु नहीं मानेगा। क्योंकि किसी विवशता वश श्रमजीवी वर्ग की पार्टी और उसकी विचारधारा से खुली प्रतिबद्धता न कर पानेवाला साहित्यकार भी अनेक अप्रत्यक्ष माध्यमों से श्रमजीवी वर्ग की विचारधारा और संगठन की सहायता कर सकता है।
____एक ऐसे समय में जब श्रमजीवी वर्ग की पार्टी कई हिस्सों में, कई दलों में विभाजित हो, तब यह सम्भव है कि साहित्यकार उनमें से किसी एक से सम्बद्ध हो या सभी से असम्बद्ध हो। ऐसी स्थिति में यह चिन्ता किये विना कि उसके लेखन से उनमें से किस दल को सहायता मिलता है, साहित्यकार श्रमजीवी वर्ग के जीवन-मूल्यों से प्रेरित और अनुप्राणित सर्जना में दत्तचित्त रह सकता है।
इस सिलसिले में यह ध्यान देने योग्य है कि पूंजीवाद के अनुचर लोग पार्टी और साहित्यकार के सम्बन्धों को जानबूझकर गलत रूप में पेश करते हैं। प्रथमतः वे पार्टी और साहित्यकार के सम्बन्धों को एकतरफा बताते हैं यानि कि पार्टी साहित्यकार को अनुशासित रखती है और पार्टी के निर्माण या अनुशासित स्वरूप में साहित्यकार का कोई योगदान नहीं होता। यह यथार्थ स्थिति नहीं है । पार्टी और व्यक्ति का वही सम्बन्ध है जो समाज और व्यक्ति