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प्रेषक नाम :: पता:
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प्रति, डॉ.अ.म., घाटगे भांडारकर प्राच्यविद्या संशोधन मंडल, पुणे ४११ 008 (भारत)
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सर्वसमावेशक सु विस्तृत प्राकृत शब्दकोश के लिए प्रश्नावली विव्दानोसे प्रार्थना है कि वे इस प्रश्नावली में प्रस्तुत मुददोंपर जहातक हो सके अपने . स्पष्ट एवं निश्चित अभिमत व्यक्त करें। प्रश्नावली में समाविष्ट न किये गये विषयों. पर भी अपने पर्यायी सुझाव भेज सकेते है। कितने प्रश्नों के जबाब देने है, सो उनकी इच्छा पर निर्भर है। शीघ्रतापूर्वक भेजे जबाबों का स्वागत होगा।'
। विस्तार प्राकृत भाषाओं के सभी शब्दों का समावेश करनेका विचार है। नियमोके स्पष्टीकरणार्थ वैयाकरणों द्वारा प्रस्तत सभी शब्दों का समावेश करना क्या आवश्यक मानते है ? यदी हाँ, तो विना संदर्भक उनके निश्चित अर्थ देना कहातक संभवनीय है , उच्चारण में समान किन्तु व्यत्पत्ति एवं अर्थ में भिन्नता होनेसे अर्थक अभावमें उनको कहीं स्थान
दिया जाये । २.. कोशमैं अन्तभाव करनेके लिए काल मर्यादा
निम्नतम क्या हो १ सन १५00 यह निर्णायक मर्यादा कहातक उचित होगी। इसके बाद हुए ग्रंथ, जो अन्तर्भत किये जाये, आप कृपया साचित करे। उपलब्ध साहित्य में जिनका प्रयोग न भी मिलता हो, ऐसे प्राकृत व्याकरणों में यत्र तत्र उल्लिखित सभी धात्वा देशों का कोश में
अंत भाव करना कहातक उचित होगा ? ४.. कोशों में देशी शब्दों के अर्थ संस्कृत में दिए
गये है। साहित्य में प्रयोग के अभाव में उनके सर्वसामान्य संस्कृत प्रतिशब्द दिये जाएँ या
सभी अर्थ १ ५. अशोक के शिलालेखों का अन्तभाव इस कोश में
न करने में सुविधा होगी, कारण कुछ अपवादों के अलावा उनका अध्ययन एवं सूचीकरण हो चुका है। क्या अन्य प्राकृत शिलालेखों का अन्तभाव किया जाए १ उनका समावेभ किस प्राकृत भाषामें हो १ -हस्व दीर्घ स्वरों एवं एकाक्षर या .
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