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हैं। आपने क्या कमाया उस पर कभी भी घमंड मत करना क्योंकि शतरंज की पारी खत्म होने के बाद राजा और मोहरे एक ही डब्बे में रख दिये जाते है। वास्तव में श्रावक दशलक्षण पर्व में धर्म के दश लक्षणों की आराधना हर वर्ष आत्मशुध्दि, विचार शुद्धि एवं चित्त की विशुद्धता हेतु करता है। उमास्वामि विरचित त्वार्थसत्र के नवमें अध्याय में "उत्तमक्षमामार्दवआर्जवसत्यशौचसंयमसपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणिधर्मः।" दश धर्मों के अंगों का वर्णन है। इस सभी अंगों के लक्षणों की समझ व मानवीय सामाजिक विकास से इनका सरोकार निम्नवत् रूप से स्पष्ट किया जा सकता है। उत्तम क्षमाक्ष अर्थात क्षय मा अर्थात मान स्वयं के मान का क्षय करना ही क्षमा है। क्षमा वीरस्य भूषणम्। अपने से निबल की गलतियों को मन से क्षमा करना किसी कायर का काम नहीं है। इसके लिए धैर्य, साहस व मानवीय संवेदनाओं का समुच्चय जरूरी है। किसी को क्षमा कर देने पर बाहरी बैर भाव तो कम हो ही जाता है किन्तु इसके साथ-साथ क्षमा प्रदान करने वाले के मन में कलुषित भावों का भी क्षय हो जाता है और उसके अन्दर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाता है जो उसके विकास तथा समाज में शान्तिपूर्ण वातावरण के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहा भी है - उत्तम क्षमा जहाँ मन होई, अन्तर बाहर शत्रु न कोई।
संसार में प्राणी को दूध और पानी के समान घुल मिल कर प्रेम से रहना चाहिए|कभी भी हृदय के आँगन में क्रोध की अग्नि नही जलने देना चाहिए क्योंकि क्रोध महा दुखदायी है कमठ का जीव पार्श्वनाथ पर क्रोध करने के कारण नरकों का दुख सहन करता था और क्षमा के धारक पार्श्वनाथ ने अपने भव दुख को समाप्त कर लिया। व्यवहार में यह युक्ति भी खूब प्रचलन में है- सूपकारं कविवैद्यं बंदिनं शस्त्र पाणिनम। स्वामिनं धनिनं मूर्ख मर्मजं न प्रकोपयेत।। रसोई बनाने वाले को, कवि को, वैद्य को, बन्दी को, हाथ में शस्त्र लिये हुए सैनिक को, स्वामी को, धनी को, मूर्ख को, और मर्म के जानने वाले को कभी भी कुपित नहीं करना चाहिए। उत्तम मार्दवउत्तम मार्दव का अर्थ है मान अहंकार न करना। संसार में स्व और पर के दुःख का कारण व्यक्ति के अपने ही अन्दर का अहंकार है जो बिना वजह कलह का सबब बनता है।