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________________ जैन दर्शन में वर्णित धर्म के दश लक्षणों का मानवीय विकास से सामाजिक सरोकार डॉ. दीपा जैन मानद शोध निदेशक- जनसहभागिता विकास संस्थान,73 महादेवनगर, न्यूलोहामण्डी रोड, जयपुर-302013 (राजस्थान) E-mail: dr.deepa jain@yahoo.in मो.09829073311 भूमिकामानव के विकास में आन्तरिक व बाह्य गुणों की अहम् भूमिका होती है। व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों को जगाने में विशुद्ध चिन्तन और शुद्ध चरित्र अर्थात् आचरण की आवश्यकता होती है। शुद्ध ध्येय की सिद्धि हेतु शुद्ध साधन व प्रयास अनिवार्य है। यदि एक व्यक्ति सही आचरण करता है तो इसमें उसका तो हित है ही किन्तु उसमें अन्य का अहित नहीं होता है। इस प्रकार समाज में एक ऐसी स्वस्थ परम्परा का सूत्रपात होता है जिसमें अभय है, शांति है, मैत्रीयता है, अनासक्ति है, साधर्मी के प्रति वात्सल्य है, अपने कर्मों की दिशा को पहचानने की क्षमता तथा सही दिशा में उसका रूख मोड़ने का सामर्थ्य है, पुरुषार्थ है अपने विकारों की निर्जरा का और जीवन को निःस्वार्थ भाव से अंतिम गंतव्य तक ले जाने का जिसमें सभी की खुशी है। जैन धर्म में दशलक्षण पर्व आत्म शुद्धि व साधना हेतु हर वर्ष मनाया जाता है। जिसमें समीक्षात्मक रूप से अपने जाने-अनजाने व विवशता में किए गए मन, वचन व कायिक आचरण की आलोचना की जाती है, प्रतिक्रमण किया जाता है तथा भविष्य में इनका जीवन में दोहरावीकरण न हो, संयमादि संकल्प के दवारा आध्यात्मिक उत्कृष्टता के सोपानों पर आगे बढ़ने हेतु आयोजन की कवायत इस महपर्व के दौरान की जाती है। वीतरागी के स्तवन या पूजन से कोई प्रयोजन नही होता लेकिन जो जीव उसकी स्तुति या नामोच्चार करते हैं उसे स्वयं के जिनत्व का बोध होता है । मेरु जैसे विशाल कर्मों के पर्वत भी स्तुति से क्षण मात्र में ढह जाते हैं स्तवन करने वाले जीव की आत्मा में सुख-शान्ति जैसे आदर्श गुण प्रति क्षण फलते फूलते रहते हैं। वन्दन करने से क्रन्दन(रोना) मिटता है और संसार में जीव का अभिनदंन होता है वन्दन करने वाले जीवों की बुद्धि ख्याति विनय गुण की प्रशंसा चंन्दन की गंध के समान स्वतः फैलती है जो व्यक्ति वंदन के भावों को अपनाते हैं, वे सज्जन कहलाते हैं क्योंकि लघुता में ही प्रभुता बसती है ऐसा गुरूजन कहते
SR No.212302
Book TitleJain Darshan me Varnit Dharm ke Dash Lakshano ka Manviya Vikas se Samajik Sarokar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepa Jain
PublisherDeepa Jain
Publication Year
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle, 0_not_categorized, & Paryushan
File Size123 KB
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