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________________ ERSNISHES । २३५ सफल न हुए। तो संहनन का सूत्र नहीं है । कोई और ही सूत्र है जिसके कारण से त्याग तपश्चरण में कोई जाय फिर भी उसका शरीर शिथिल नहीं होता। तीसरी बात एक और है। महात्मा बुद्ध ने सर्व प्रथम गृह त्याग के पश्चात् जैन धर्म में दीक्षा ली और उन्होंने जैन धर्म की साधना की थी। बारह वर्ष ता. उन्होंने बड़ी तपस्या की थी। उस बारह वर्ष की तपस्या में महात्मा बुद्ध का शरीर कृष हो गया, केवल ढाँचा रह गया, उनके शरीर की सव हड्डियाँ झलकने लगीं, शरीर बिल्कुल सूख गया। और एक दिन की बात थी कि वे कोई निरंजना नाम की नदी पार कर रहे थे । अब नदी को पार करते हुए में नदी के किनारे पर चढ़ने के लिये कोई घाट तो बना नहीं था। सीढ़ियाँ तो थीं नहीं सो वहाँ की बंटीली झाड़ियों को पकड़कर ऊपर चढ़ना _था । सो वहाँ पर चढ़ते हुए उन्हें ख्याल आया कि जब इस छोटी सी नदी को पार करने की भी मेरे अन्दर सामर्थ्य नहीं है तो फिर इस विशाल भवसागर को मैं कैसे पार कर सकता हैं ? इस ख्याल के आते ही उन्होंने अपने वैर्य को खो दिया। आखिर किसी तरह से नदी पार करके जब वे बाहर पहुंचे तो एक वृक्ष के नीचे जाकर विश्राम करने के लिये बैठ गये। यहां उन्हें ख्याल आया कि मैं जरूर कोई सूत्र चूक गया हूँ मेरे से जरूर कोई ऐसी कमी रह गई है जिसके कारण मुझे ये सब परेशानियाँ उठानी पड़ रही हैं। . देखिये-सारी विधियाँ महात्मा बुद्ध ने बड़ी ईमानदारी से अपनायीं और उसी समय जब कि भगवान महावीर भी मौजूद थे, उस समय महात्मा बुद्ध का शरीर तो सूख गया और महावीर स्वामी का शरीर नहीं सूखा । कुछ लोग कहते है कि महात्मा बुद्ध का बुढ़ापा आया इसलिये शरीर सूखा, पर ऐसी बात नहीं है। शरीर के जो धर्म हैं बाल सफेद हो जाना, शरीर में झुर्रियां पड़ जाना, कमर झुक जाना आदि ये सब बातें तो महावीर स्वामी के शरीर में भी तो होनी चाहिये थी पर ये क्यों नहीं हुई ? शरीर के जो अवश्यम्भावी परिवर्तन हैं वे होने ही चाहिये पर महावीर स्वामी के शरीर में क्यों नहीं हुआ और महात्मा बुद्ध के शरीर में हुआ। तो बात यहाँ क्या थी कि महात्मा बुद्ध । की अपनी साधना में कहीं चूक हो गई थी और महावीर स्वामी को कहीं चूक नहीं हुई। ... मुझे कबीरदास जी का यह वाक्य बड़ा सुन्दर लगता है-"ज्यों की त्यों घर दीनी चदरिया"-याने इस शरीर को कितना ही तपश्चरण में लगाया फिर भी इसमें कुछ कमी न आयी, ज्यों की त्यों ही धरी रह गई। सन्यास से शरीर में कोई कमी नहीं आनी चाहिये क्योंकि वहाँ पर किसी
SR No.212299
Book TitleNaabhi Humara Kendra Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages9
LanguageMarathi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size343 KB
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