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________________ 3 इनकी रचनाएँ मुख्यतः स्तवनात्मक और उपदेशात्मक है। इन्होंने पहेलियाँ भी लिखी हैं। उदाहरण देखिए - आदि अखर विन जग को ध्यावे, मध्य अखर बिन जग संहारे। अन्त अखर बिन लागे मीठा, वह सबके नयनों में दीठा॥ उत्तर = काजल दाह वह अंत दह रह मध्य. अरू मांय। तुम दरसन बिन होत है, दरसन से जाय। उत्तर = दर्द 16 - रत्नकुंवर जी - ये स्थानकवासी परम्परा के पूज्य श्री अमोलक ऋषि जी महाराज के सम्प्रदाय की प्रवर्तिनी रही हैं। संवत् 1992 में 51 ढालों में निबद्ध इन की एक रचना श्री रत्नचूड़ मणिचूड़ चारित्र प्रकाशित हुई है। उक्त श्रमणी कवयित्रियों के अतिरिक्त श्राविका कवयित्रियों में चम्पादेवी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। ये देहली-निवासी लालासुन्दर लाल टोंग्या की धर्म पत्नी थी। इनके पिता अलीगढ़ निवासी श्री टनी थे। इनका जन्म संवत 1913 के आसपास हआ था। 66 वर्ष की आय में ये बीमार पड़ गई। तब अहंद भक्ति में तन्मय हो कर इन्होंने कई पद लिखे। जिनका संग्रह “चम्पा शतक" नाम से डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल ने सम्पादित किया है। वर्तमान में भी विभिन्न सम्प्रदायों में कई जैन श्रमणियाँ काव्य साधना में लीन है। तेरा पंथ. सम्प्रदाय की हिन्दी कवयित्रियों के सम्बन्ध में एक निबन्ध उदयपुर से प्रकाशित होने वाली शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। जिसमें श्रमणी जयश्री, श्रमणी मंजूला, श्रमणी स्नेह कुमारी श्रमणी कमलश्री, श्रमणी रत्नश्री, श्रमणी कानकुमारी, श्रमणी फूलकुमारी श्रमणी कमलश्री, श्रमणी रत्नश्री, श्रमणी कान कुमारी, श्रमणी फूलकुमारी श्रमणी मोहना, श्रमणी कनक प्रभा, श्रमणी यशोधरा, श्रमणी सुमनश्री तथा श्रमणी कनकधी की काव्य रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दिया है। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि जैन काव्य धारा का प्रतिनिधित्व करने वाली इन श्रमणी कवयित्रियों का हिन्दी कवयित्रियों में एक विशिष्ट स्थान है। इन्होंने न तो डिंगल कवयित्रियों की भाँति अंतःपुर में रहकर रानियों के मनोविनोद के लिये काव्य रचना की और न किसी की प्रतिस्पर्धा में ही लेखनी को मोड़ दिया। इन्होंने प्राणिमात्र को अपना जीवन निर्मल, निर्विकार और सदाचार बनाने का उपदेश दिया है। स्वानुभूतियों से निसृत होने के कारण इनके उपदेश सीधे स्वयं को स्पर्श करते हैं। 6 - मुनि द्वय अभिनन्दन ग्रन्थ (व्यावर) पृष्ठ 303 से 307 तक (56) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212275
Book TitleHindi Kavya ke Vikas me Shramaniyo ka Yogadana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Gaud
PublisherZ_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Publication Year1992
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size507 KB
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