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________________ 61 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड ................-.-.-. विज्ञान एवं औद्योगिक स्थलों के दौरे कराये जाते हैं, वहां उन्हें मन्दिरों, मस्जिदों, तीर्थस्थलों, मेलों, पर्व-उत्सवों में भी ले जाना चाहिए, साधु-सन्तों को स्कूलों में बुलाना चाहिए। उनके प्रवचन कराना चाहिए। उन्हें ऐसे स्थलों पर ले जाना चाहिए जहाँ लोग स्वत: अपना वैभव त्यागकर सादगी एवं शान्ति का जीवन बिताते हों। विद्यालयों के पुस्तकालयों में ऐसी सरल एवं कथात्मक पुस्तके होनी चाहिए, जिन्हें बच्चे रुचिपूर्वक पढ़ सकें। स्कूल में किसी व्यक्ति विशेष के स्वागत, सम्मान एवं किसी विशिष्ट नेता, अफसर, मन्त्री, मिनिस्टर के स्वागत में जो उत्सव होते हैं, उनकी जगह हमारे बड़े-बड़े लोकोत्सव मनाये जाने चाहिए। जो मेले, नदियों के किनारों, मन्दिर, मठों के पास लगते हैं, वे स्कूलों के प्रांगण में भी लगने चाहिए। जो नाच, गान, नाटक, मेलों में होते हैं, वे सभी स्कूलों में लोकोत्सव के रूप में प्रस्तुत होने चाहिए। महापुरुषों, महाज्ञानियों, तपस्वियों, विद्वानों, महाकवियों, महान साहित्यकारों के जीवन पर प्रवचन, समारोह आदि स्कूलों में आयोजित होने चाहिए / इन सब के लिए पाठ्यक्रमों में स्थान होना आवश्यक है। बड़े-बड़े शिक्षाविद बैठकर चिन्तन करें। योजनाएँ बनावें, समस्त वर्ष का कलेण्डर तैयार करें, तथा पाठ्यक्रम में हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं की कौन सी मूल-भूत बातें समाविष्ट हों और उनका कार्यान्वयन किस तरह हो, इस पर विचार होना लाजिमी है। कि कि न साधयति कल्पलतेव विद्या? -कल्पलता के समान विद्या क्या क्या काम सिद्ध नहीं करती ? अर्थात् सभी कार्य सफल करती है। -भोजप्रबन्ध 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212268
Book TitleHamare Shikshalaya aur Lokotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevilal Samar
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size818 KB
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