SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वप्नशास्त्र : एक मीमांसा ४८७ ०० २. श्रुत स्वप्न-सुनी हुई घटना, कहानी आदि को स्वप्न में देखना। ३. दृष्ट स्वप्न-जागते में देखी हुई वस्तु को स्वप्न में देखना । ४. प्रकृति विकार जन्य स्वप्न-वात, पित्त आदि किसी धातु की न्यूनाधिकता के कारण शरीर में विकार उत्पन्न हो जाता है, तब उसके कारण स्वप्न दिखाई देते हैं । जैसे-वात प्रकृति वाले को पर्वत या वृक्ष आदि पर चढ़ना, आकाश में उड़ना आदि स्वप्न आते हैं। इसी प्रकार पित्त प्रकोप वाला व्यक्ति जल, फूल, अनाज, जवाहरात, लाल-पीले रंग की वस्तुएँ, बाग-बगीचे आदि स्वप्न में देखता है । कफ की बहुलता वाला व्यक्ति अश्व, नक्षत्र, चन्द्रमा, तालाब, समुद्र आदि का लांघना ये दृश्य स्वप्न में देखता है । ५. स्वाभाविक स्वप्न-सहज रूप में जो दिखाई दे । ६. चिन्ता समुत्पन्न स्वप्न-जिस वस्तु का बार-बार चिन्तन किया जाता हो वही स्वप्न में दिखाई देती है। ७. देवता के प्रभाव से उत्पन्न होने वाला स्वप्न -किसी देवता के अनुकूल या प्रतिकूल होने पर स्वप्न में वह सूचना देता है। ८. धर्मक्रिया प्रभावोत्पन्न स्वप्न-धर्मक्रिया करने से, चित्त की समाधि से भविष्य की शुभ सूचना देने वाला स्वप्न । ६. पापोदय से आने वाला स्वप्न-ये स्वप्न प्रायः मयानक त्रासदायी तथा भावी अनिष्ट व अमंगल सूचक होते हैं। इनमें से प्रथम छह प्रकार के स्वप्न निरर्थक होते हैं, चाहे वे अच्छे हों या बुरे, जीवन में उनकी कोई विशेष उपयोगिता या प्रभाव नहीं होता। किंतु देवता द्वारा दशित तथा धर्म एवं पाप-प्रभाव से आये हुए स्वप्न सत्य होते हैं, उनका शुभ या अशुभ जो भी फल हो, वह अवश्य मिलता है। भाष्यकार आचार्य जिनभद्रगणि ने भी स्वप्न के इन्हीं नौ निमित्तों का वर्णन किया है।" स्वप्नों को सत्यता उक्त वर्णन में स्वप्नों के जो निमित्त बताये हैं उनमें यह स्पष्ट सूचित किया है कि शरीर के वात-पित्त आदि दोषों के कारण जो स्वप्न आते हैं वे प्रायः अयथार्थ ही होते हैं, वे सपने, सपने ही रहते हैं। किन्तु पुण्योदय के प्रभाव से, मानसिक प्रसन्नता, समाधि आदि की अवस्था में जो भविष्य सूचक शुभ स्वप्न दिखाई देते हैं वे प्रायः अवश्य ही सत्य सिद्ध होते हैं । सरलात्मा, भावितात्मा तथा विरक्त हृदय वाले व्यक्ति कभी-कभार ही स्वप्न देखते हैं और उन स्वप्नों में प्रायः भविष्य छुपा रहता है। गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा था-मंते ! जो स्वप्न दिखाई देते हैं, क्या वे सत्य होते हैं या व्यर्थ ? उत्तर में भगवान ने बताया गौतम ! जो संवत-आत्मा-त्यागी संयमी श्रमण स्वप्न देखते हैं वे स्वप्न सत्य होते हैं-संवुडे सुविणं पासइ महातच्चं पासइ । उनका फल अवश्य ही सत्य सिद्ध होता है । इसके अतिरिक्त अव्रती (असंवत) या व्रताव्रती (श्रावक) आदि के स्वप्न सत्य भी हो जाते हैं और असत्य भी। सामान्यतः साधारण मनुष्य भी कभी-कभी ऐसा स्वप्न देखता है जो सत्य होता है । प्राचीन तथा नवीन मनोविज्ञान की दृष्टि से इस पर विचार करें तो यही स्पष्ट होता है कि जब इन्द्रियाँ सोती हैं, तब भी अन्तर्मन जागता रहता है और उसके पर्दे पर भविष्य में होने वाली घटनाओं की छवि पहले से ही प्रतिबिम्बित हो जाती है। मन अज्ञात घटनाओं का साक्षात्कार करने में सक्षम है, अगर मन भविष्य का ज्ञान न कर पाता हो तो फिर भविष्यद्रष्टा, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी अघटित भावी घटनाओं को कैसे जान पायेंगे? वे भी तो भविष्यवाणियाँ करते हैं और वे सत्य होती हैं। इसका कारण यह स्पष्ट है कि मन में, शक्ति का स्रोत छुपा है, जिनका मन अधिक सक्षम, ज्ञान बल से समर्थ, तपश्चरण तथा ध्यान से निर्मल हो गया हो, वे जागृत अवस्था में ही भविष्य का साक्षात्कार कर सकते हैं, किन्तु साधारण मनुष्य का मन जो वास्तव में इतना निर्मल और स्थिर नहीं रहता, सुषुप्ति या अनिद्रा दशा में जब वह कुछ स्थिर होता है तो भावी के कुछ अस्पष्ट संकेतों को ग्रहण कर लेता है और वे ही स्वप्न रूप में हमें दिखाई देते हैं। को कैसे जान पाकर पाता हो तो कि रण यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212248
Book TitleSwapnashastra Ek Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Science
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy