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________________ ४८८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड स्वप्न-दर्शन में समय की महत्ता स्वप्नशास्त्र के अनुभवियों ने इस विषय पर भी काफी गंभीरतापूर्वक विचार किया है कि किस समय में देखा हुआ स्वप्न उत्तम है, किस समय का मध्यम । स्वप्न-दर्शन का फल समझने में समय का बहुत महत्व है। इसलिए स्वप्नशास्त्र में बताया है रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गये शुभाशुभ फलप्रद स्वप्न का फल बारह महीने से मिलता है। * दूसरे प्रहर में देखे स्वप्न का छह महीनों से । तीसरे प्रहर में देखे स्वप्न का फल तीन महीनों से। चौथे प्रहर में जब एक मुहूर्त भर रात बाकी रहती है तब जो स्वप्न दिखाई दे उसका फल दस दिनों में और सूर्योदय के समय देखे स्वप्न का फल तुरन्त मिलता है दृष्ट: सूर्योदये स्वप्नः सद्यः फलति निश्चितम् । 4 माला स्वप्न, दिवा स्वप्न और रोग एवं मल-मूत्रादि की पीड़ा के कारण आने वाले स्वप्न निरर्थक होते हैं। प्राचीन ग्रन्थों एवं आगमों में जहाँ भी वर्णन आता है कि अमुक माता ने स्वप्न देखे वहां प्रायः रात्रि के चतुर्थ प्रहर का ही उल्लेख मिलता है। आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिषष्टि शलाका० में महापुरुषों की माताओं के स्वप्न दर्शन का एक ही समय सर्वत्र सूचित किया है-यामिन्याः पश्चिमे यामे"," अथवा "यामिन्याः पश्चिमे क्षणे । महापुराणकार आचार्य जिनसेन ने भी-निशायाः पश्चिमे यामे-रात्रि के अन्तिम प्रहर मे ही शुभ स्वप्न दर्शन का उल्लेख किया है । पश्चिम रात्रि में शुभ स्वप्न देखने का एक यह भी कारण हो सकता है कि थका हुआ मन प्रथम तीन प्रहर तक गाढ़ निद्रा लेकर शांत हो जाता है, उस कारण चंचलता भी कम हो जाती है, और कुछ ताजगी एवं प्रसन्नता की अनुभूति होती है अतः उस समय में शांति एवं स्थिरता की मनःस्थिति में जो स्वप्न आता है वह प्रायः शीघ्र ही सत्य होता दिखाई देता है। भगवान महावीर ने भी रात्रि के अन्तिम प्रहर में ही १० स्वप्न देखे थे ।२० इस प्रकार पश्चिम रात्रि का या सूर्योदय के पूर्व का स्वप्न शोघ्र फलदायी माना गया है तथा रात्रि के प्रथम प्रहर में देखा गया स्वप्न दीर्घकाल से फल देने वाला होता है। स्वप्न जागरिका स्वप्नशास्त्र के अनुसार यह भी माना गया है कि शुभ स्वप्न देखकर फिर सोना नहीं चाहिए। अशुभ स्वप्न देखने के बाद भले ही नींद ले लें। क्योंकि स्वप्न-दर्शन के पश्चात् नींद लेने से उसका फल व्यर्थ हो जाता है। शास्त्रों में जहाँ भी वर्णन आता है, प्रायः यही बताया गया है कि 'सुमिण देसणेण पडिबुद्धा-धम्म जागरियं करेमाणी' स्वप्न देखकर जागृत हो गई और फिर धर्म जागरिका करती हुई अर्थात् शेष रात्रि प्रमुस्तवन, धर्म चिन्तन आदि करके व्यतीत की । इसे ही आगम की भाषा में स्वप्न जागरिका कहा गया है । सुमिण जागरिया" का अर्थ करते हुए आचार्य शीलांक ने बताया है-शुभस्वप्न देखने के पश्चात् जागृत रहना, नींद नहीं लेना स्वप्नजागरिका है। अगर नींद आ गई अथवा फिर कोई अशुभ स्वप्न आ गया तो पूर्व दृष्ट स्वप्न का फल मंद या क्षीण हो जाता है । शुभ स्वप्न स्वप्न-शास्त्रवेत्ताओं का कथन है कि रात्रि को सोते समय मनुष्य की जैसी वृत्तियाँ होती हैं, वैसे ही स्वप्न प्रायः आते हैं। भावना में उत्तेजना, भय, वासना या अन्य किसी प्रकार की मलिनता रहेगी तो रात्रि को प्रायः उसी प्रकार के भयप्रद अशुभ स्वप्न आयेंगे। सोते समय अगर मन प्रसन्न, चित्त शांत और भावनाएँ निर्मल रहीं तो प्रायः शुभस्वप्न दिखाई देते हैं । रात्रि को सोते समय प्रभुस्मरण, नवकार मन्त्र का ध्यान तथा आत्मचिन्तन करना इसलिए लाभदायक है कि उससे न केवल कर्म-निर्जरा ही होती है किन्तु अशुभ स्वप्नों का निवारण भी होता है और या तो अच्छी गहरी नींद आती है अथवा शुभ स्वप्न दिखाई देते हैं। सामान्यतः मनुष्य जानना चाहता है कि शुभ स्वप्न कौन से होते हैं और अशुभ स्वप्न कोन से ? मूलतः स्वप्नों का यह वर्गीकरण किसी एक ग्रन्थ में नहीं मिलता। कहीं-कहीं किसी स्वप्न को शुभ माना जाता है तो दूसरी जगह उसे अशुभ भी मान लिया जाता है। स्वप्नशास्त्रियों के अपने अनुभव के आधार पर इसकी मान्यता में अन्तर भी आ जाता है। ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212248
Book TitleSwapnashastra Ek Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Science
File Size2 MB
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