________________ स्वप्न का लक्ष्य मानव अस्तित्व के क्षितिज को व्यापक बनाना है और कहीं कहीं उनके द्वारा अंतर्दृष्टि का उदय होना भी है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि अक्सर स्वप्न में मनुष्य दिव्य या धर्म के बिम्बों से साक्षात्कार करना है जो मानव और दिव्य के सम्बंध को प्रकट करता है। यहाँ पर दिव्य आद्यरूप (यथा तपस्वी, मंदिर, क्रास, देव-देवियाँ, देवदूत आदि) भिन्न-भिन्न रूपों से आते हैं। अक्सर यह भी पाया गया कि जो व्यक्ति भौतिकवादी अधिक हैं, वे इस प्रकार के स्वप्न अधिक देखते हैं। * तीसरा निष्कर्ष जो इन स्वप्नों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है, वह है स्वप्न दर्शन और जागृत अवस्था में सहसम्बंध अथवा दूसरे शब्दों में स्वप्नावस्था (सुषुप्ति) और जागृतावस्था में सापेक्ष सम्बंध जिनकी निरपेक्ष स्वतंत्रता का प्रश्न ही नहीं है। इससे यह भी संकेतित होता है कि स्वप्नावस्था, जागृतावस्था की तरह, मानव अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण अंग है और यह अस्तित्व दोनों स्थितियों में (स्वप्न एवं जागृत) किसी न किसी रूप में सुरक्षित रहता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि ये दोनों स्थितियाँ मानव अस्तित्व की ऐतिहासिक निरन्तरता को प्रकट करती है। प्रसिद्ध दार्शनिक शापनहावर का मत है कि ये दोनों अवस्थाएं कार्य-कारण नियम से शासिक हैं और दोनों के मध्य, जहाँ तक सार तत्व का प्रश्न है, कोई विशेष अंतर नहीं है। अतः हम कवियों की इस उक्ति को मान सकते हैं कि जीवन एक लम्बा और दीर्घ स्वप्न है। चौथा तथा अंतिम निष्कर्ष जिसे युंग प्रस्तुत करता है, वह है स्वप्न के दो प्रकार महान स्वप्न और लघु स्वप्न। महान स्वप्न अधिकतर महान मानवीय समस्याओं, ब्रह्मांडीय एवं सामाजिक सरोकारों से सम्बंधित होते हैं, जबकि लघु स्वप्न अपेक्षाकृत छोटी प्रतिदिन की समस्याओं से सम्बंधित होते हैं और मूलतः व्यक्तिगत होते हैं। स्वप्न मूलतः सामूहिक अचेतन और 'वस्तुगत मनस्' से उद्भूत होते हैं तथा अपनी अभिव्यक्ति में “परावैयक्तिक" प्रकार के होते हैं। महान स्वप्न का विश्लेषण ही अधिकतर किया गया है क्योंकि युंग के अनुसार आध्यरूपीय स्वप्ने अधिकतर सामूहिक अर्थ प्रदान करते हैं न कि वैयक्तिक अनुभव और अर्थ। आद्यरूपीय बिम्बों में जीवन और मृत्यु, मिलन और विरह, रूपांतर और बलिदान, सृजन और विलय, देव और राक्षस आदि अपने परावैयक्तिक वैश्विक मानवीय पक्ष को ही उद्घाटित करते हैं जो जातीय मनस् में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उपर्युक्त विवेचन से यह नितांत स्पष्ट है कि स्वप्न का संसार मानवीय अस्तित्व और उसके ऐतिहासिक विकास को समझने में सहायक होता है। महान तथा लघु स्वप का वर्गीकरण, मेरी दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण है कि महान् स्वप्नों के विवेचन के द्वारा हम मानवीय एवं ब्रह्मांडीय सरोकारों को, उसके आदिम रूप से ठीक प्रकार से समझ सकते हैं। जागृतावस्था और स्वप्नावस्था का महत्व इसलिए है कि ये दोनों अवस्थाएं मानवीय चेतना के दो स्तर हैं जो सापेक्ष महत्व रखते हैं। मानव अस्तित्व में इन दोनों अवस्थाओं का अपना ऐतिहासिक महत्व है। आद्यरूपीय बिम्ब सामूहिक अचेतन से सम्बंधित होने के साथ-साथ मानव की व्यापक समस्याओं, मिथकों, ब्रह्मांडीय रूपों तथा सामाजिक वैयक्तिक अभिप्रायों को भी समझने में भी सहायक होते हैं। अतः स्वप्न-मनोविज्ञान एक सार्थक, अर्थपूर्ण विज्ञान है जो मानव अस्तित्व से गहरा जुड़ा हुआ ज्ञान-क्षेत्र है। ५.झ १५/जवाहरनगर जयपुर, 30200: ऐसे अनेक उदाहरण मनोविश्लेषण परक पुस्तकों और स्वरूप- विश्लेषण सम्बन्धी पुस्तकों में मरे पड़ है। तथा मेडार्ड बास की पुस्तक दि “एनालिसिस ऑफ ड्रीमस्" तथा युग की पुस्तक " साइकोलॉजी ऑफ दि अन्कान्सेस आदि। एनालिसिस ऑफ ड्रीम्स, मेडार्ड बास, पृ. 208 / (183) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org