________________ 406 जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ ग्रन्थों में नारद को नरकगामी कहा गया है। इससे यह फलित होता स्त्रीमुक्ति के साथ-साथ अन्यतैर्थिक एवं गृहस्थों की मुक्ति की सम्भावना है कि यापनीय परम्परा, श्वेताम्बर परम्परा की ही तरह उदार थी और को भी स्वीकार करती थी। सन्दर्भ 1. इत्थी पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगाः। सलिंगे अन्न लिंगे य गिहिलिंगे तहेव य / / संपादक-साध्वी चंदनाजी, उत्तराध्ययन, वीरायतन प्रकाशन, आगरा 1972, 36/49. (अ) ज्ञाताधर्मकथा, अष्टम अध्ययन के अन्त में मल्लि के तीर्थङ्कर एवं मुक्त होने का उल्लेख है। (ब) अन्तकृद्दशांग वर्ग आठ के सभी अध्ययनों के अन्त में स्त्रीमुक्ति के उल्लेख हैं। 3. आवश्यकचूर्णि, भाग 1. पृ० 181 एवं भाग 2, पृ० 212. 4. अष्टप्राभृत सुत्तपाहुड, प्रका० परमश्रुत प्रभावक मंडल, अगास, गाथा 23-26. M.A. Dhaky "The Date of Kundakundacharya", Aspects of Jainology, Vol. III, Pt. D.D. Malvania Felicitation Volume, P.V. Research Institute, 1991, p. 187. तत्त्वार्थभाष्य, संपा० पं० खूबचन्द सिद्धान्त शास्त्री, प्रका० श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास 1932, 10/7. 7. सर्वार्थसिद्धि, संपा०- पं० फूलचन्द सिद्धान्त शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, 1955, 10/9. राजवार्तिक, संपा०- महेन्द्र कुमार जैन, प्रका० भारतीय ज्ञानपीठ, काशी 1953, 10/9. अष्टप्राभृत सुत्तपाहुड, प्रका० परमश्रुत प्रभावक मंडल, अगास, गाथा तित्थणो तित्थसिद्धा तित्थकरी तित्थे तित्थसिद्धा तित्थकरी तित्थे तित्थसिद्धाओ। तत्त्वार्थाधिमगसूत्र-स्वोपज्ञभाष्येण श्री सिद्धसेनगणिकृत टीकायां च समलंकृतम्, प्रका० जीवचंद साकरचंद झवेरी, सूरत, 1930, द्वितीय विभाग 10/7, पृ० 308 20. प्रणिपत्य मुक्तिमुक्ति प्रमदमलं धर्ममहतो दिशतः। वक्ष्ये स्त्रीनिर्वाणं केवलिभुक्तिं संक्षेपात् / / शाकटायन व्याकरण, 'स्त्रीमुक्तिप्रकरण', संपा०- हीरालाल जैन एवं ए०एन० उपाध्ये, प्रका० भारतीय ज्ञानपीठ, काशी 1971, श्लोक 1, पृ० 121. 21. दस चेव नपुंसेसु वीसं इत्थियासु य। पुरिसेसु य अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई / / उत्तराध्ययन संपा०रतनलाल दोशी, श्रमणोपासक जैन पुस्तकालय सैलाना, वीर सं० 2478, 36/51 22. इत्थी पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य / / वही, 36/49. 23. सूत्रकृतांगसूत्र, संपा०- मधुकरमुनि, श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर 1982, 1/3/4/1-1. 24. देवनारदे अरहता इसिणा बुइयं। इसिभासियाई, सम्पादक महोपाध्याय विनयसागर, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 1/1 // 25. सयंबरो य आसंबरो य बुद्धो य अहेव अन्नो वा। समभावभाविअप्पा लहेय मुक्खं न संदेहो / / सम्बोधसत्तरी, 2. 26. लिंगे पुनरन्यो विकल्प उच्यते-द्रव्यलिंग भावलिंग अलिंगमिति। प्रत्युत्पन्न भावप्रज्ञापनीय प्राप्तसिद्ध्यति। तत्त्वार्थभाष्य, संपा०-६० खूबचन्द सिद्धान्त शास्त्री, प्रका० श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, 1932, 10/7. 27. लिंगेन केन सिद्धि? अवेदत्वेन त्रिभ्यों वा वेदभ्यः सिद्धिभवितो न द्रव्यत: पुल्लिंगेनेव। अथवा निर्ग्रन्थलिंगेन। संग्रथलिंगेन वा सिद्धिर्भूतपूर्व नयापेक्षया। सर्वार्थसिद्धि, सम्पादक फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी 1978, पृ० 472. 28. सूत्रप्राभृत, 23. 29. साक्षन्निग्रंथालिंगेन पारम्पत्तितोन्यत: साक्षात्सग्रंथलिंगेन सिद्धौ निम्रन्थता वृथा। तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, संपा०- पं० महेन्द्र कुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, 1957, 10/9. 30. बृहत्कथाकोश, संपा०- ए० एन० उपाध्ये, भारतीय विद्याभवन बम्बई, वि० सं० 1999, 57/562. 31. अन्त्यदेहः प्रकृत्यैव नि:कषायोएप्यसौक्षितौ। हरिवंशपुराण, संपा० पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, 1962, 42/22. 32. वही, 65/24. 23. 10. वही, गाथा 24. 11. वही, गाथा 25-26 12. Padmanabh S. Jaini, Gender and Salvation, Munshiram Manoharlal Publishers (P) Ltd. New Delhi, 1992, p. 4. 13. णवि सिज्झइ वत्थधरो जिणसासणे जइवि होइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्ख मग्गो सेसाउम्मग्गया सव्वे / / -अष्टप्राभृत, सुत्तपाहुड, प्रकाशक परमश्रुत प्रभावक मंडल, अगास. गाथा 23 / 14. वही, गाथा 25. 15. वही, गाथा 26. 16. वही, गाथा 24. 17. हरिभद्र ललितविस्तर, प्रका० श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, वि० सं० 1990, पृ० 57-59. 18. सव्वत्थोआ तित्ययरिसिद्धा तिथ्ययरितित्थे, णोतित्थयरसिद्धा असंखेज्ज गुण तित्थयरितित्थे, णो तित्थयरिसिद्धा असंखेज्ज गुणओ। -सिद्धप्राभृत, उद्धृत ललितविस्तरा, पृ० 56. अत्थितित्थकरसिद्ध तित्थकरतित्थे, ने तित्थसिद्धा तित्थकर तित्थे, तित्थसिद्धा तित्थकरतित्थे तित्थ सिद्धाणो, तित्थकरीसिद्धा तित्थकरी 19. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org