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श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड
सूफी सिद्धान्त और साधना
डॉ. केरव प्रथम वीर, एम. ए., पीएच. डी. अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग, कला वाणिज्य महाविद्यालय, हडपसर (ना)
संसार के रहस्यवादी साधना सम्प्रदायों में सूफी-मत अपना एक प्रमुख स्थान रखता है । अनेक पहुँचे हुए औलियों (सन्तों) और उदात्त प्रेम की पीड़ा को अभिव्यक्ति देने वाले अनेक कवियों ने विश्व को इस मत के रहस्यवादी साहित्य का एक अनूठा तथा समृद्ध उपहार प्रदान किया है। राबिया (सन् ७१७), जूनून (सन् ०६०), बायजीद बिस्तानी (सन् ००६), अबू सुलैमान मंसूर (सन् १२२), अहमीद अलगनी (सन् १०४८ ) फरीदुद्दीन अत्तार (सन् १९२०), अमीर खुसरो, मलिक मुहम्मद जायसी आदि अनेक ऐसे ही कुछ विश्वप्रसिद्ध सूफियों के नाम हैं ।
'सूफी' इस्लाम का ही एक सम्प्रदाय माना जाता है और उसका मूल आधार भी 'कुरान' को ही बताया गया है किन्तु सूफी सन्तों की साधना और आचरण, परम्परावादी इस्लामियों से नितान्त भिन्न और स्वच्छन्द है । इसलिए प्रारम्भ के अनेक सूफियों को परम्परावादी इस्लामियों ने बड़े कष्ट पहुँचाये। मंसूर जैसे अनेक सन्तों को निर्मम मृत्युदण्ड भी भोगना पड़ा।
और यह इस्लाम का रहस्यवाद (तसव्वुफ) ही सूफी 'दर्शन' है ।" किन्तु इसका धीरे-धीरे विकास हुआ परम्परावादी इस्लाम से अलग होता चला गया। सूफी नाम के सन्दर्भ में भी विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। परन्तु अधिकांश विद्वानों का कहना है कि सूफी शब्द 'सफा' (पवित्र) से बना है। जो लोग पवित्र थे वे 'सूफी' कहलाये । " कुछ विद्वानों का मत है कि 'सूफी' शब्द 'सूफ' (ऊन) से बना है। सूफी साधक ऊन का वस्त्र धारण किया करते थे, इसलिए उन्हें सूफी कहा गया। कुछ भी हो, ईसा की ध्वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इस शब्द का अत्यधिक प्रचलन हो गया। प्रारम्भ में मुसलमान साधक संन्यासी जीवन व्यतीत करते थे; रहस्यवादी प्रवृत्ति का विकास बाद में हुआ । वे गरीबी में अपना जीवन व्यतीत करते और बड़े विनम्र थे। वे वैयक्तिक रूप से साधनारत थे; उनका कोई संगठित साम्प्रदायिक स्वरूप नहीं था। सूफीमत का वास्तविक रूप तो बाद में विकसित हुआ ।
इस विकास पर किस धर्म और दर्शन का अधिक प्रभाव रहा है, इस सन्दर्भ में विद्वानों में मतभिन्नता है । कुछ लोग ग्रीक दर्शन, यूनानी दर्शन और नव-अफलातूनी दर्शन के प्रभाव से इसका विकास बताते हैं । कुछ विद्वानों के मत से इस पर भारतीय दर्शन ( वेदान्त और बौद्ध) का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। यहाँ इस मतभिन्नता की छानबीन करना हमारा उद्देश्य नहीं है। परन्तु इतना निश्चित है, सूफी सिद्धान्तों पर बहुत कुछ वेदान्त और बौद्ध दर्शन का प्रभाव दिखायी देता है। यहाँ हम सूफी आस्था और साधना के प्रमुख तत्त्वों का संक्षिप्त जूननून बायजीद बिस्तानी, अबू सुलैमान, मंसूर, अबू- हमीद अलगजनी आदि ने सूफी इनसे पूर्व के सूफी साधक सिर्फ संन्यासी जीवन व्यतीत करते थे। राबिया सूफियों में सभी प्रकार के कर्मकाण्ड का त्यागकर, प्रेमतत्त्व के आधार पर परमात्मा से एकत्व स्थापित किया था ।
विवेचन करना चाहते हैं । सिद्धान्तों का विकास किया है। सर्वप्रथम साधिका थी जिसने
सूफी आस्था का केन्द्रबिन्दु ईश्वर है । अतः यहाँ सर्वप्रथम ईश्वर सम्बन्धी सूफियों की धारणा का आकलन कर लेना समीचीन होगा। कुरान में ईश्वर (अल्लाह) को सृष्टिकर्ता कहा गया है ( Allah is the Creator of all things and He is One and Almighty.) वह सर्वोत्कृष्ट है; समृद्धवान है, विजेता है और महान है; संसार के सभी पदार्थ उसी से उत्पन्न हुए हैं और उसी में चले जायेंगे ( Unto Allah belongeth whatsoever is on the earth and unto Allah all things are returned ) ", वह दण्ड में कठोर है ( He is severe in punishment ) । कुरान में ईश्वर के सिंहासन आदि का वर्णन भी इस तरह किया गया है मानो उस पर बैठने वाला व्यक्ति अपरिमेय वैभव और समृद्धि का स्वामी है। इस तरह इस्लाम में ईश्वर सगुण जैसा दिखायी देता है। वह एक ऐसा नटवर है, जिसकी इच्छा मात्र से उत्पन्न हुई सृष्टि-नटी सदैव जिसके संकेत से नृत्य करती है । वह ऐसा सूत्रधार है जो एक स्थान
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