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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
राजस्थानी आदि-आदि भाषाओं में जैन संतों व श्रावकों ने महाराज, आचार्य श्रीनानालालजी महाराज, जैन दिवाकर साहित्य की सभी विधाओं में उत्तम साहित्य का निर्माण श्रीचौथमलजी महाराज, कविश्रेष्ठ उपाध्याय श्रीअमरमुनिजी किया है। जैन अंग/आगम साहित्य अर्द्धमागधी प्राकृत में महाराज, आगमज्ञ युवाचार्य श्रीमधुकरमुनिजी महाराज, उपलब्ध है जिसकी प्रकृति दार्शनिक व आध्यात्मिक है। महान् विद्वान् आचार्य श्रीदेवेन्द्रमुनिजी महाराज के अतिरिक्त अपभ्रंश जैन साहित्य ने हिन्दी काव्य को छंद, शैली व सहस्रों श्रमणों व श्रमणियों के प्रभावशाली प्रवचनों के कल्पना-प्रवणता प्रदान की। तमिल एवं तेलुगु भाषाओं ___ अनेक संकलन प्रकाशित हुए हैं। यह साहित्य न केवल का प्राचीन साहित्य उच्च कोटि की रचनाओं से समृद्ध है। जैन आचार व तत्वज्ञान का प्रतिपादन करता है परन्तु तमिल भाषा के महान् ग्रन्थ “तिरुक्कुरल" को पाँचवा वेद जन-जन को व्यसन रहित व सदाचार युक्त जीवन जीने माना जाता है। बहुत से विद्वानों की मान्यता है कि यह
की प्रेरणा प्रदान करने वाला भी है। एक जैन कृति है। इसके रचयिता महान् संत तिरुवल्लुवर थे। मध्यकालीन जैन साहित्य अध्यात्म एवं भक्ति प्रधान
श्री सुमनमुनिजी महाराज का योगदान - है, पद-समृद्ध है। इस पर जैन सिद्धांतों का समीचीन श्रमण संघीय मंत्री व सलाहकार श्री सुमनमुनिजी प्रभाव पड़ा है। इस सम्बंध में “महावीर वाणी के आलोक महाराज आधनिक जैन समाज के एक श्रेष्ठ संत. गंभीर में हिन्दी का सत काव्य" शोध ग्रन्थ में डॉ. पवनकुमार चिंतक व आगम-विवेचक हैं। आपकी साहित्य-साधना जैन का निम्न कथन दृष्टव्य है :- "जब हम हिन्दी के की भी अभी तक ठीक प्रकार से समीक्षा नहीं हई। इसका संत साहित्य का अवलोकन करते हैं तब पता चलता है एक ही प्रमुख कारण है-आपकी प्रसिद्धि-परांगमुख वृत्ति । कि उसमें जिन नैतिक व मानवीय मूल्यों को प्रतिपादित आप अपने स्वयं के बारे में कुछ भी प्रचार नहीं करते किया गया, वे वही है जिन्हें सदियों पूर्व तीर्थंकर महावीर तथा निरंतर साधना में निमग्न रहते हैं। आपको जैनागम ने तत्कालीन जन-जीवन में प्रचारित किया था यथा - समता,
व अन्य शास्त्रों का तलस्पर्शी ज्ञान है तथा आप उसके संयम, सम्यक्त्व, निरहंकारिता, अहिंसा, क्षमा, अपरिग्रह
श्रेष्ठ व्याख्याता भी है। खेद है कि वर्षों तक आपके एवं अचौर्य आदि ।” जैन श्रमणों व श्रावकों ने काव्य
प्रवचनों व व्याख्यानों को लिपिबद्ध नहीं किया जा सका। ग्रन्थ, कथा साहित्य, निबंध, नाटक व साहित्य की अन्य सभी विधाओं में श्रेष्ठ रचनाओं का सृजन करके साहित्य
श्रमण जीवन अंगीकार करने के बाद आपने अपने के भंडार को समृद्ध किया है। जैन श्रमण और श्रमणियाँ,
जीवन के तीन लक्ष्य निर्धारित किये -- १. संयम साधना, जो निरंतर ग्रामानुग्राम, नगर-नगर विहार करते हैं, प्रतिदिन
२. ज्ञान साधना व ३. गुरु-भक्ति। आपने विभिन्न भाषाओं प्रवचन देते हैं, उन्होंने अपनी दैनंदिनी, धर्मचर्या में व्यस्त
का अध्ययन किया तथा जैन, बौद्ध व वैदिक साहित्य के रहने के बावजूद भी अध्यात्म, नीति व सदाचरण से अनक ग्रन्थ पढ़। आपको प्राकृत, सस्कृत, हिन्दी, पजाबी, सम्बन्धित समृद्ध प्रवचन साहित्य का निर्माण किया है। गुजराती, राजस्थानी आदि विभिन्न भाषाओं का विशद
अभा तक इस विपुल साहित्य का थोड़ा ही अंश प्रकाशित ज्ञान है तथा आप इन सभी भाषाओं में अध्ययन अध्यापन हुआ है लेकिन जो भी प्रकाश में आया है वह अपूर्वसाहित्य करते करवाते हैं। आपने जैनागम का विशेष अध्ययन है। आचार्य श्रीजवाहरलालजी महाराज, आचार्य किया तथा आगमों की व्याख्याओं व टीकाओं आदि श्रीआत्मारामजी महाराज, आचार्यप्रवर श्रीआनन्दऋषिजी ग्रन्थों का पारायण किया। श्वेताम्बर साहित्य के अतिरिक्त
श्री सुमनमुनि जी की साहित्य साधना
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