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सुमन साहित्य : एक अवलोकन
अनोखे तपस्वी
ऐतिहासिक रचना
मौजूद थे। इस ग्रन्थ में उनकी जीवनी को तेरह छोटे-छोटे यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसमें पंजाब प्रांत के
___ परिच्छेदों में विभाजित किया गया है:तेजस्वी श्रमण-रल पूज्यवर श्री गैंडेराय जी महाराज का शब्द-चित्र, जन्म, विराग, दीक्षा, गुरु-सेवा, तपस्वी, प्रेरक जीवन-चरित्र प्रस्तुत किया गया है। ये आचार्य श्री उपकारी संत, गुरुदेव, उदारचेता संत, आदर्श प्रचारक, सोहनलालजी महाराज के ज्येष्ठ शिष्य थे। आश्चर्य है कि महाप्रयाण, चार्तुमास-तालिका आदि। आपके सांसारिक महान् लेखक पूज्य श्री सुमनमुनि जी महाराज को उनके भ्राता, जो आपकी प्रेरणा से आपकी दीक्षा के तेरह वर्षों दर्शन करने का अवसर नहीं मिला परन्तु आपने उनके बाद आपके शिष्य बने, श्री जमीतरायजी महाराज का प्रेरणादायी जीवन के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था और संक्षिप्त परिचय भी इसी ग्रन्थ में दिया गया है। अंत में आपके दादा गुरु श्री शुक्लचन्द्रजी महाराज की इच्छा थी पूज्य प्रवर के सम्पर्क में आए हुए लोगों के १७ संस्मरण कि उनका जीवन चरित्र प्रकाश में आये तो बहुत लोगों भी दिये गए हैं जिससे इस पुस्तक की उपयोगिता और को लाभ मिलेगा। उनकी अभिलाषा की पूर्ति का प्रयल अधिक बढ़ गई है। है - यह ग्रन्थ । इस ग्रन्थ की सामग्री संकलन हेतु अनेक
आदर्श जीवन का चित्रांकन महापुरुषों से श्री सुमनमुनिजी महाराज सा. ने प्रत्यक्षतः वार्तालाप किया। वार्तालाप के आधार पर जो संस्मरण ।
इस पुस्तक के प्रारम्भ में सुयोग्य लेखक ने तपस्वी उभरे एवं जो बिम्ब - प्रतिबिम्ब उनके जीवन के उजागर मुनिजी का बड़ा ही सुंदर शब्द-चित्र खींचा है। उनमें से हुए, उन्हें ही मूल स्रोत बनाया गया है। मुख्य सामग्री इन कुछ पंक्तियां देखें:महापुरुषों के मुख से उजागर हुई है :- पंडित प्रवर “लम्बा कद (दीर्घ अवगाहना), इकहरा शरीर, गौरवर्ण, शुक्लचन्द्रजी महाराज, श्री कपूरचन्द्रजी म., श्री फूलचन्द्रजी अजानवार (पटनों तक लाती भाज) विशाल शान
अजानुबाहू (घुटनों तक लम्बी भुजाएं), विशाल भाल, म., श्री ब्रह्मऋषिजी म., अनेक महान् साध्वियां व श्रावक
प्रकृताजन नेत्र, तूलिका-सी उंगलियां, सीप-सी अंजली, श्राविकाएं जिन्हें उनके दर्शन, प्रवचन श्रवण करने, उनके
विष्कम्भक वक्षस्थल, गम्भीर नाभि, मत्स्योदर, सीप-सी साथ तत्त्व चर्चा करने एवं उनके जीवन को निकटता से
अंजली, खड़ाओं की भांति पाद-जिसमें बीच का भाग देखने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ था।
भूमि-स्पर्श नहीं करता था, शुक-नासिका , उदात्त एवं महान् तपस्वी
गम्भीर स्वर । बीस वर्ष की पूर्ण यौवनावस्था में संसार के
सारे भौतिक सुखों का परित्याग करने वाले एक आदर्श श्री गैंडेरायजी महाराज में अनेक गुण थे लेकिन एक
त्यागी, उग्र संयमी और मार्गदर्शक महापुरुष! स्वभाव से तपस्वी के रूप में वे अति विख्यात थे, अतः इस ग्रन्थ का
स्पष्ट वक्ता, खरापन, सरल ओजपूर्ण भाषा का प्रयोग, नामकरण 'अनोखे तपस्वी' किया गया है। ऐसे संत कम
एकांतप्रिय, निर्भीक, तपः संयम में लीन रहने की वृत्ति, पाए जाते हैं, जिनमें ज्ञान और तपश्चरण दोनों गुण
स्व कष्टसहिष्णु, स्व-पर दोष प्रक्षेपण असहिष्णु, गुरुभक्त, विद्यमान हो। श्री गैंडेरायजी में ये दोनों गुण प्रचुरता से क्रियावादी. संयमी पुरुष, परम सेवी।"
अनोखे तपस्वी
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