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सुमन साहित्य : एक अवलोकन
अध्यात्म - मनीषी श्री सुमनमुनि जी का सर्जनात्मक साहित्य
डॉ. इन्दरराज बैद
अध्यात्म भारतीय संस्कृति का प्राण-तत्व है। विद्याओं सूत्र, तत्त्व चिंतामणि (संपादन), बृहदालोयणा-ज्ञान गुटका में इससे बढ़कर कोई विद्या नहीं। तत्व से साक्षात्कार (संपादन) अनोखा तपस्वी श्री गैंडेरायजी महाराज, शुक्लकरानेवाले आध्यात्मिक बोध की उपलब्धि जीवन की श्रेष्ठ स्मृति, शुक्ल ज्योति, पंजाब श्रमण-संघ गौरव आचार्य श्री उपलब्धि है, जिसे प्राप्त करने के लिए साधक को अपने अमरसिंहजी महाराज और शुक्ल-प्रवचन (चार भाग) इन जीवन का हर पल समर्पित करना होता है। अहर्निश ग्रंथों के अध्ययन से श्रद्धेय मुनिश्री के तीन रूप उभरकर स्वाध्याय-निरत रहकर ज्ञान की उत्कृष्ट उपासना से आत्मा सामने आते हैं, पहला तत्त्व-शिक्षक का रूप, दूसरा को उज्ज्वल करना ही अध्यात्म के पथ पर चलना है। चरितलेखक का रूप और तीसरा साहित्यानुशीलक का आभ्यंतर तप के इस श्रेयस्कर मार्ग पर चरणन्यास करने रूप। मुनिश्री का वैदुष्य यद्यपि तीनों रूपों में झलकता है, की योग्यता सबमें नहीं होती, श्रद्धावान् संयमी साधक ही फिर भी उनके तत्त्व-शिक्षक की स्पष्ट छाप उनके साहित्य स्वाध्याय-तप की पात्रता रखता है। भगवद्गीता में उद्घोष में सर्वत्र देखी जा सकती है। जैन दर्शन की सैद्धांतिक है-“श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ।" (४/३६) कृतियों में ही नहीं, उनके जीवनी-साहित्य और संपादित श्रमण-संस्कृति ने भी 'मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः' कहकर साहित्य में भी उनका तत्त्ववेता-रूप स्पष्ट दृष्टिगोचर होता साधक की अर्हता को सुनिश्चित कर दिया है। ऐसे है। यह आवश्यक भी है, क्योंकि उनकी साहित्य-सर्जना साधक-रत्नों में अग्रणी हैं मुनिवर श्री सुमनकुमार जी हृदय-रंजन की नहीं, आत्म-रमण की प्रक्रिया है। जीवन महाराज जो विगत पचास वर्षों से आध्यत्मिक पथ पर चरितों में अथवा प्राचीन साहित्य के अनुशीलन में जहाँ चलते हए रत्नत्रयाराधना पूर्वक श्रमणत्व की श्रेष्ठता का कहीं भी उन्हें अवसर मिला है. जैन-दर्शन की बारीकियों .. समुद्घोष करते रहे हैं। आज उनकी दीक्षा की स्वर्ण को उजागर करने में तत्पर रहे हैं। उनके समग्र साहित्य जयंती की शभ वेला में जब हम उनके साधनामय जीवन का अध्ययन करनेवालों को भले ही पनरुक्ति का आभास पर दृष्टिपात करते हैं, तो हम श्रद्धा और गौरव की पुनीत होता हो, पर किसी ग्रंथ को स्वतंत्र रूप से पढ़ने वाले भावनाओं से अभिभूत हो उठते हैं। अपने संयम का पाठक की जिज्ञासा तो ऐसे ही लेखन से शांत हुआ करती दृढ़तापूर्वक पालन करते हुए, श्रद्धा-भक्ति के साथ । ज्ञानोपासना का जो आदर्श उन्होंने उपस्थित किया है, वह
'प्रवचन दिवाकर' मुनिश्री सुमन कुमार जी महाराज परम स्तुत्य है। चिंतत, मनन और मंथन करके अध्यात्म
का आगम-वेत्ता तत्त्व-शिक्षक का रूप प्रमुखतापूर्वक जिन का जो सारस्वत प्रसाद उन्होंने वितरित किया है, उसे
कृतियों में उभरकर आया है, उनमें तत्त्व-चिंतामणि के देखकर सिद्ध होता है कि श्री सुमन मुनिजी सच्चे अर्थों में
तीन भाग, गणनीय और पठनीय हैं। जैन धर्म-दर्शन के उपदेष्टा हैं, उपाध्याय हैं, वे उच्च कोटि के विद्वान् श्रमण
आधारभूत सिद्धांतों का तात्विक विवेचन ही 'तत्त्व-चिंतामणि' हैं, जिन्होंने धार्मिक साहित्य के उत्तम ग्रंथों से जिन-शासन
का प्रतिपाद्य विषय है, जिसके संबंध में मुनिश्री का मंतव्य की अभिनंदनीय सेवा की है।
_है: “आज के विज्ञान-युग में मनुष्य प्रत्येक वस्तुके विषय श्रमण-संघ के सलाहकार मंत्री मुनि श्री सुमनकुमार में अन्वेषणात्मक दृष्टिकोण और जिज्ञासा रखता है, अस्तु, जी महाराज की उल्लेखनीय कृतियाँ हैं:- श्रमणावश्यक उन जैन दर्शन के तत्त्वों को सर्वांगीण रूप में जानने और
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