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________________ चतुर्थ खण्ड | २७२ आशाधर का त्रिषष्टिस्मृति, अर्हद्दास का मुनिसुव्रतचरित, अजितप्रभ सूरि का शांतिनाथचरित आदि चरितकाव्यों के नाम उल्लेखनीय हैं। १५वीं शताब्दी में पद्मनाभक्त कवि हुये जिन्होंने संवत् १४६२ में यशोधरचरित की रचना की। यशोधरचरित अपने समय का लोकप्रिय काव्य है जिसकी कितनी ही पाण्डुलिपियाँ राजस्थान के विभिन्न शास्त्र-भण्डारों में उपलब्ध होती हैं। इसी शताब्दी में भट्रारक सकलकीर्ति हुये जो संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इन्होंने अपना समस्त जीवन संस्कृत के प्रचार प्रसार में समर्पित किया हुआ था। इनके द्वारा निबद्ध यशोधर चरित्र, मल्लिनाथचरित्र, जम्बूस्वामिचरित्र, सुदर्शनचरित्र, शान्तिनाथचरित्र, पार्श्वनाथचरित्र वर्द्धमानचरित्र संस्कृत की उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। अकेले भट्टारक सकलकीति ने संस्कृत भाषा में २५ से भी अधिक रचनाओं को निबद्ध करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।' भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में होने वाले भट्टारकों एवं अन्य साधुओं ने संस्कृत काव्यों को निबद्ध करने की परम्परा को जीवित रखा । ब्रह्म जिनदास ने संस्कृत में जम्बूस्वामीचरित्र, रामचरित्र (पद्मपुराण)हरिवंशपुराण, भट्टारक सोमकीति ने प्रद्युम्नचरित्र, एवं यशोधरचरित्र एवं भट्टारक शुभचन्द्र ने चन्द्रप्रभचरित्र, करकण्डुचरित्र, चन्दनाचरित्र, जीवन्धरचरित्र, श्रेणिकचरित्र, पाण्डवपुराण जैसे कितने ही काव्य लिख कर संस्कृत काव्यधारा को जीवित रखा। ढूंढाड प्रदेश में होने वाले संस्कृत जैन कवियों में पं. राजमल्ल, पं. जगन्नाथ तथा भट्टारक सुरेन्द्रकीति का नाम विशेषत: उल्लेखनीय है । पं. राजमल्ल ने संवत् १९४२ में जम्बूस्वामिचरित्र की रचना की थी। इसी तरह पं. जगन्नाथ ने सुखनिधान, नेमिनरेन्द्रस्तोत्र जैसे काव्यों की रचना करके संस्कृत की लोकप्रियता में वृद्धि की। व्याकरण व्याकरणग्रन्थों की रचना के क्षेत्र में भी जैनाचार्यों का उल्लेखनीय योगदान है। प्राचार्य पूज्यपाद प्रथम जैन वैय्याकरण हैं जिन्होंने जैनेन्द्रव्याकरण की रचना की थी। जैनेन्द्रव्याकरण वहत व्याकरण है जिस पर विभिन्न टीकायें उपलब्ध हैं। इनमें अभयनन्दि कृत महावृत्ति, प्रभाचन्द्र कृत शब्दाम्भोजभास्कर, प्राचार्य श्रुतकीर्तिकृत पंचवस्तुप्रक्रिया एवं पं. गुणनन्दि की प्रक्रिया उल्लेखनीय हैं। दूसरा जैन व्याकरण शाकटायन का शब्दानुशासन अथवा शाकटायनव्याकरण है । इस पर स्वयं सत्रकार ने विस्तृत टीका अमोघवत्ति निबद्ध की थी। इस व्याकरण पर और भी टीकायें उपलब्ध होती हैं। इनमें यक्षवर्मा की चिंतामणि टीका, अजितसेनाचार्य की मणिप्रकाशिका, प्राचार्य अभयचन्द्र की प्रक्रियासंग्रह, भावसेन की शाकटायनटीका एवं दयापाल मुनि की रूपसिद्धि के नाम उल्लेखनीय हैं।' आचार्य हेमचन्द्र अपने समय के लोकप्रिय वैय्याकरण थे। इनका "सिद्धहेमशब्दानुशासन" अत्यधिक लोकप्रिय व्याकरण है। इस व्याकरण पर स्वयं ग्रन्थकार ने तो लघुवत्ति एवं बहदवत्ति लिखी ही किन्तु अन्य २८ टीकायें और उपलब्ध होती हैं। १. देखिये राजस्थान के जैन सन्तः व्यक्तित्व एवं कृतित्व, २. अनेकान्त वर्ष १२-किरण-९, पृष्ठ २९६ ३. जैन ग्रन्थ भण्डार्स इन राजस्थान-पृष्ठ १६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212112
Book TitleSanskruti Sahitya ke Vikas me Jainacharyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size647 KB
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